जब हजारों आदमियों के बीच से लाश गुम हो गई तो मालूम होता है अभी बहुत कुछ उपद्रव होने वाला है।
जीतसिंह-मैंने तो समझा था कि अब जो कुछ थोड़ी-सी उम्र रह गई है आराम से कटेगी, मगर नहीं, ऐसी उम्मीद किसी को कुछ भी न रखनी चाहिए।
सुरेन्द्रसिंह-खैर, जो होगा देखा जायगा, इस समय क्या करना मुनासिब है, इसे सोचो।
जीतसिंह-मेरा विचार था कि तारासिंह को बद्रीनाथ वगैरह के पास भेजते जिसमें वे लोग भैरोंसिंह को छुड़ाकर और किसी कार्रवाई में न फँसें और सीधे यहाँ चले आवें, मगर ऐसा करने को भी जी नहीं चाहता। आज भर आप और सब्र करें, अच्छी तरह सोच कर कल मैं अपनी राय दूँगा।
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पण्डित बद्रीनाथ, पन्नालाल, रामनारायण, चुन्नीलाल और जगन्नाथ ज्योतिषी भैरोंसिंह ऐयार को छुड़ाने के लिए शिवदत्तगढ़ की तरफ गए। हुक्म के मुताबिक कंचनसिंह सेनापति ने शेर वाले बाबाजी के पीछे जासूस भेज कर पता लगा लिया था कि भैरोंसिंह ऐयार शिवदत्तगढ़ किले के अन्दर पहुँचाए गए हैं। इसलिए इन ऐयारों का पता लगाने की जरूरत न पड़ी, सीधे शिवदत्तगढ़ पहुँचे और अपनी-अपनी सूरत बदल कर शहर में घूमने लगे। पाँचों ने एक-दूसरे का साथ छोड़ दिया, मगर यह ठीक कर लिया था कि सब लोग घूम-फिर कर फलाँ जगह इकट्ठे हो जायेंगे।
दिन-भर घूम-फिर कर भैरोंसिंह का पता लगाने के बाद सब ऐयार शहर के बाहर एक पहाड़ी पर इकट्ठे हुए और रात-भर सलाह करके राय कायम करने में काटी, दूसरे दिन ये लोग फिर सूरत बदल-बदलकर शिवदत्तगढ़ में पहुँचे। रामनारायण और चुन्नीलाल ने अपनी सूरत। उसी जगह के चोबदारों की सी बनाई और वहाँ पहुँचे जहाँ भैरोंसिंह कैद थे। कई दिनों तक कैद रहने के सबब उन्होंने अपने को जाहिर कर दिया था और असली सूरत में एक कोठरी के अन्दर, जिसके तीन तरफ लोहे का जंगला लगा हुआ था, बन्द थे। उसी कोठरी के बगल में उसी तरह की कोठरी और थी जिसमें गद्दी लगाए बूढ़ा दारोगा बैठा था और कई सिपाही नंगी तलवार लिए घूम-घूम कर पहरा दे रहे थे। रामनारायण और चुन्नीलाल उस कोठरी के दरवाजे पर जाकर खड़े हुए और बूढ़े दारोगा से बात-चीत करने लगे।
रामनारायण-आपको महाराज ने याद किया है।
बूढ़ा-क्यों, क्या काम है? भीतर आओ, बैठो, चलते हैं।
रामनारायण और चुन्नीलाल कोठरी के अन्दर गए और बोले-
रामनारायण-मालूम नहीं, क्यों बुलाया है, मगर ताकीद की है कि जल्द बुला लाओ।