जंगल से एकदम ही निश्चिन्त हो जायें।"
इस छोटे जंगल को काटते देर ही कितनी लगनी थी, जिस पर महाराज की मुस्तैदी के सबब यहाँ कोई भी ऐसा नजर नहीं आता था जो पेड़ों की कटाई में न लगा हो। दोपहर होते-होते जंगल कट के साफ हो गया, मगर किसी का कुछ पता न लगा यहाँ तक कि इन्द्रजीतसिंह की तरह आनन्दसिंह के भी गायब हो जाने का निश्चय करना पड़ा। हाँ, इस जंगल के अन्त में एक कमसिन नौजवान हसीन और बेशकीमती गहने-कपड़े से सजी हुई औरत की लाश पाई गई जिसके सिर का पता न था।
यह लाश महाराज सुरेन्द्रसिंह के पास लाई गई। अब सब की परेशानी और बढ़ गई और तरह-तरह के खयाल पैदा होने लगे। लाचार उस लाश को साथ लेकर शहर की तरफ लौटे। जीतसिंह ने कहा, "हम लोग जाते हैं, तारासिंह को भेज सब ऐयारों को जो शिवदत्त की फिक्र में गए हुए हैं बुलवा कर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह की तलाश में भेजेंगे, मगर तुम इसी वक्त उनकी खोज में जहाँ तुम्हारा दिल गवाही दे, जाओ।"
तेजसिंह अपने सामान से तैयार ही थे। उसी वक्त सलाम करके एक तरफ को रवाना हो गए, और महाराज रूमाल से आँखों को पोंछते हुए चुनार की तरफ बिदा हुए।
उदास हो पोतों की जुदाई से दुःखी महाराज सुरेन्द्रसिंह घर पहुँचे। दोनों लड़कों के गायब होने का हाल चन्द्रकान्ता ने भी सुना। वह बेचारी दुनिया के दुःख-सुख को अच्छी तरह समझ चुकी थी, इसलिए कलेजा मसोसकर रह गई। जाहिर में रोना-चिल्लाना उसने पसन्द न किया, मगर ऐसा करने से उसके नाजुक दिल पर और भी सदमा पहुँचा, घड़ी भर में ही उसकी सूरत बदल गई। चपला और चम्पा को चन्द्रकान्ता से कितनी मुहब्बत थी इसको आप लोग खूब जानते हैं, लिखने की कोई जरूरत नहीं।दोनों लड़कों के गायब होने का गम इन दोनों को चन्द्रकान्ता से ज्यादा हुआ और दोनों ने निश्चय कर लिया कि मौका पाकर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह का पता लगाने की कोशिश करेंगी।
महाराज सुरेन्द्रसिंह के आने की खबर पाकर वीरेन्द्रसिंह मिलने के लिए उनके पास गए। देवीसिंह भी वहाँ मौजूद थे। वीरेन्द्रसिंह के सामने ही महाराज ने सब हाल देवीसिंह से कहकर पूछा कि "अब क्या करना चाहिए?"
देवीसिंह-मैं पहले तो उस लाश को देखना चाहता हूँ जो उस जंगल में पाई गई थी।
सुरेन्द्रसिंह-हाँ, तुम उसे जरूर देखो।
जीतसिंह-(चोबदार से) उस लाश को, जो जंगल में पाई गई थी, इसी जगह लाने के लिए कहो।
"बहुत अच्छा" कहकर चोबदार बाहर चला गया, मगर थोड़ी ही देर में वापस आकर बोला, "महाराज के साथ आते-आते न मालूम वह लाश कहाँ गुम हो गई। कई आदमी उसकी खोज में परेशान हैं मगर पता लगता!"
वीरेन्द्रसिंह-अब फिर हम लोगों को होशियारी से रहने का जमाना आ गया।