पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/३९

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की तरफ इशारा करके) यह दूध है, पीजिए।"

आनन्दसिंह की जान-में-जान आ गई, प्यास और भूख से दम निकला जाता था, ऐसे समय में थोड़े मेवे और दूध का मिल जाना क्या थोड़ी खुशी की बात है? मेवा खाया, दूख पीया, जी ठिकाने हुआ, इसके बाद उस सिपाही को धन्यवाद देकर बोले, "अब मुझे किसी तरह इस मकान के बाहर कीजिए।"

सिपाही-मैं आपको इस मकान के बाहर ले चलूंगा मगर इसकी मजदूरी भी तो मुझे मिलनी चाहिए।

आनन्दसिंह-जो कहिये, दूँगा।

सिपाही-आपके पास क्या है जो मुझे देंगे?

आनन्दसिंह-इस वक्त भी हजारों रुपये का माल मेरे बदन पर है।

सिपाही-मैं यह सब-कुछ नहीं चाहता।

आनन्दसिंह-फिर?

सिपाही-उसी कम्बख्त के बदन पर जो कुछ जेवर हैं वे मुझे दीजिए और एक हजार अशर्फी।

आनन्दसिंह—यह कैसे हो सकेगा? वह तो यहाँ मौजूद नहीं है और हजार अशर्फी भी कहाँ से आवें?

सिपाही-उसी से लेकर दीजिए।

आनन्दसिंह-क्या वह मेरे कहने से देगी?

सिपाही—(हँसकर) वह तो आपके लिए जान देने को तैयार है। इतनी रकम की क्या बिसात है।

आनन्दसिंह-तो क्या आज मुझे यहाँ से न छुड़ावेंगे?

सिपाही-नहीं, मगर आप कोई चिन्ता न करें, आपका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता, कल जब वह राँड आवे तो उससे कहिए कि तुमसे मुहब्बत तब करूँगा, जब अपने बदन का कुल जेवर और एक हजार अशर्फी यहाँ रख दो, उसके दूसरे दिन आओ तो जो कहोगी मैं मानूंगा। वह तुरन्त अशर्फी मँगा देगी और कुछ जेवर भी उतारकर देगी। नालायक बड़ी मालदार है, उसे कम न समझिये।

आनन्दसिंह-खैर, जो कहोगे करूँगा।

सिपाही-जब तक आप यह न करेंगे मैं आपको इस कैद से न छुडाऊँगा। आप यह न सोचिए कि उसे धोखा देकर या जबर्दस्ती उस राह से चले जायेंगे जिधर से वह आती-जाती है। यह कभी नहीं हो सकेगा, उसके आने-जाने के लिए कई रास्ते हैं।

आनन्दसिंह-अगर वह तीन-चार दिन न आवे तब?

सिपाही—क्या हर्ज है, मैं आपकी बराबर ही सुध लेता रहूंगा और खाने-पीने को पहुँचाया करूँगा।

आनन्दसिंह–अच्छा, ऐसा ही सही।

वह सिपाही कमन्द लगाकर छत पर चढ़ा और दीवार फांद मकान के बाहर हो गया।