कोस भर के बाद पहाड़ी उतरने की नौबत पहुँची। वहाँ ये दोनों फिर रुके और चारों तरफ देखने लगे। छोटी-सी घंटी बजाने की आवाज आई। घंटी किसी खोह या गड़हे के अन्दर बजाई गई थी जो वहाँ से बहुत करीब था जहाँ ये दोनों बहादुर खड़े हो इधर-उधर देख रहे थे।
ये दोनों उसी तरफ मुड़े जिधर से घंटी की आवाज आई थी। फिर आवाज आई, अब तो ये दोनों उस खोह के मुंह पर पहुँच गये जो पहाड़ी की कुछ ढाल उतर कर पगडंडी के रास्ते से बाईं तरफ हट कर थी और जिसके अन्दर से घंटी की आवाज आई थी। बेधड़क दोनों आदमी खोह के अन्दर घुस गये। अब फिर एक बार घंटी बजने की आवाज आई और साथ ही एक रोशनी भी चमकती हुई दिखाई दी जिसकी वजह से उस खोह का रास्ता साफ मालूम होने लगा, बल्कि उन दोनों ने देखा कि कुछ दूर आगे एक औरत खड़ी है जो रोशनी होते ही बाईं तरफ हट कर किसी दूसरे गड़हे में उतर गई जिसका रास्ता बहुत छोटा बल्कि एक ही आदमी के जाने लायक था। इन दोनों को विश्वास हो गया कि यह वही औरत है जिसकी खोज में हम लोग इधर आये हैं।
रोशनी गायब हो गई मगर अन्दाज से टटोलते हुए ये दोनों भी उस गड़हे के मुँह पर पहुँच गये जिसमें वह औरत उतर गई थी। उस पर एक पत्थर अटकाया हुआ था लेकिन उस अनगढ़ पत्थर के अगल-बगल छोटे-छोटे ऐसे कई सूराख थे जिनके जरिये से गड़हे के अन्दर का हाल ये दोनों बखूबी देख सकते थे।
दोनों उसी जगह बैठ गये और सूराखों की राह से अन्दर का हाल देखने लगे। भीतर रोशनी बखूबी थी। सामने की तरफ चट्टान पर बैठी वही औरत दिखाई पड़ी जिसने अभी तक अपने मुंह से नकाब नहीं उतारी थी और थकावट के सबब लम्बी साँस ले रही थी। उसके पास ही एक कमसिन खूबसूरत हब्शी छोकरी बड़ा-सा छुरा हाथ में लिए खड़ी थी, दूसरी तरफ एक बदसूरत हब्शी कुदाल से जमीन खोद रहा था। बीच में छत के सहारे एक उल्टी लाश लटक रही थी, एक तरफ कोने में जल से भरा हुआ मिट्टी का घड़ा, एक लोटा और कुछ खाने का सामान पड़ा हुआ था। उस गड़हे में इतना ही कुछ था जो लिख चुके हैं।
कुछ देर बाद उस औरत ने अपने मुँह से नकाब को उतार दिया। अहा, क्या खूबसूरत गुलाब-सा चेहरा है मगर गुस्से से आँखें ऐसी सुर्ख और भयानक हो रही हैं कि देखने से डर मालूम पड़ता है। वह औरत उठ खड़ी हुई और अपने पास वाली छोकरी के हाथ से छुरा ले उस लटकती हुई लाश के पास पहुंची और दो अंगुल गहरी एक लकीर उसकी पीठ पर खींची।
हाय-हाय, ऐसी हसीन और इतनी संगदिली! इतनी बेदर्दी! अभी-अभी एक खून किये चली आती है और यहाँ पहुँच कर फिर अपने राक्षसीपन का नमूना दिखला रही है! वह लाश किसकी है? कहीं यह भी कोई चुनार का खैरख्वाह या हमारे उपन्यास का पात्र न हो।
पीठ पर जख्म खाते ही लाश फड़की। अब हुआ कि वह मुर्दा नहीं है कोई जीता आदमी तफलीफ देने के लिए लटकाया गया है। जख्म खाकर लटका हुआ