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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/४२

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दोनों आदमी इधर-उधर ढूंढ़ने लगे, बहुत तकलीफ करने की नौबत न आई और दस ही कदम पर एक तड़पती हुई लाश पर इन दोनों की नजर पड़ी।

सिपाही ने अपने बगल से एक थैली निकाली और चकमक पत्थर से आग झाड़ मोमबत्ती जला उस तड़पती लाश को देखा। मालूम हुआ कि किसी ने कटार या खञ्जर इसके कलेजे के पार कर दिया है, खून बराबर बह रहा है, जख्मी पैर पटकता और बोलने की कोशिश करता है मगर बोला नहीं जाता।

सिपाही ने अपनी थैली से एक छोटी बोतल निकाली जिसमें किसी तरह का अर्क भरा हुआ था। इसमें से थोड़ा अर्क जख्मी के मुह में डाला। गले के नीचे उतरते ही उसमें कुछ बोलने की ताकत आई और बहुत ही धीमी आवाज से उसने नीचे लिखे हुएकई टूटे-फूटे शब्द अपने मुंह से निकालने के साथ ही दम तोड़ दिया-.

"ओफ...सोस, यह खूबसूरत पिशाची...तेजसिंह की...जान...मेरी तरह...उसके फन्दे में...हाय! "इन्द्रजीतसिंह को!!"

उस बेचारे मरने वाले के मुंह से निकले हुए ये दो-चार शब्द कसे ही बेजोड़ क्यों न हों, मगर इन दोनों सुनने वालों के दिलों को तड़पा देने के लिए बहुत काफी थे। आनन्दसिंह से ज्यादा उस सिपाही को बेचैनी हुई जो अपने में बहुत कुछ कर गुजरने की कुदरत रखता था और जानता था कि इस वक्त अगर कोई हाथ कुंअर इन्द्रजीतसिंह और तेजसिंह की मदद को बढ़ सकता है तो वह सिर्फ मेरा ही हाथ है।

सिपाही-कुमार, अब आप घर जाइए। इन टूटी-फूटी बेजोड़ मगर मतलब से भरी बातों की जो इस मरने वाले के मुँह से अनायास निकल पड़ी हैं सुनकर निश्चय हो गया कि आपके बड़े भाई और ऐयारों के सिरताज तेजसिंह किसी आफत में जो बहुत जल्द तबाह कर देने की कुदरत रखती है, फँस गये हैं। ऐसी हालत में मैं जो बहुत कुछ कर गुजरने का हौसला रखता हूं किसी तरह नहीं अटक सकता और मेरा मतलब तभी सिद्ध होगा जब उस औरत को खोज निकालूंगा जो अभी यह आफत कर गई और आगे कई तरह के फसाद करने वाली है।

आनन्दसिंह-तुम्हारा कहना बहुत सही है, मगर क्या तुम कह सकते हो कि ऐसी खबर पाकर मैं चुपचाप घर चले जाना पसन्द करूँगा और जान से ज्यादे प्यारों की मदद से जी चुराऊँगा?

सिपाही—(कुछ सोच कर) अच्छा, तो ज्यादा बात करने का मौका नहीं है, चलिए। हाँ, सुनिये तो, आपके पास कोई हर्बा तो है नहीं! काम पड़ने पर क्या कर सकेंगे? मेरे पास एक खंजर और एक नीमचा है, दोनों में जो चाहें, एक आप ले लें।

आनन्दसिंह-बस, नीमचा मेरे हवाले कीजिए और चलिये।

आनन्दसिंह ने नीमचा अपनी कमर में लगाया और सिपाही के साथ पैदल ही उस तरफ को बढ़ चले जिधर वह खूनी औरत बकती हुई चली गई थी।

ये दोनों ठीक उसी रास्ते की पगडण्डी पकड़े हुए थे जिस पर वह औरत गई थी। थोड़ी-थोड़ी दूर पर साँस रोक कर इधर-उधर की आहट लेते, जब कुछ मालूम न होता तो फिर तेजी के साथ बढ़ते चले जाते।