मेरी अशर्फियाँ गायब हैं, कोई कहता है मेरी जवाहिरात की पोटली गुम हो गई, कोई कहता है हम लुट गए, अब क्या किया जाय? हम तो इस फिक्र में हैं कि जिस तरह हो ये लोग जल्द चुनार पहुँचें जिसमें भीमसेन की जान बचे, मगर ये लोग तो खमीरी आटे की तरह फैले ही जाते हैं। खैर, एक दफे इनको धमकी देनी चाहिए।
बाकरअली–देखो, तुम लोग बदमाशी करोगे तो फिर कैद कर लिए जाओगे!
बद्रीनाथ-जी हाँ! मैं भी यही सोच रहा हूँ।
पन्नालाल-ठीक है, जरूर कैद कर लिए जायेंगे, क्योंकि अपनी जमा माँग रहे हैं। चुपचाप चले जायें तो बेहतर है, जिसमें बखूबी रकम पचा जाओ और कोई सुनने भी न पावे!
भैरोंसिंह—यह धमकी तो आप अपने घर में खर्च कीजियेगा। भलमनसी इसी में है कि हम लोगों की जमा बाएँ हाथ से रख दीजिये! और नहीं, तो चलिये राजा साहब के पास, जो कुछ होगा उन्हीं के सामने निपट लेंगे।
बाकरअली-अच्छी बात है, चलिये।
सब कोई-चलिये, चलिये!
यह मसखरों का झुण्ड बाकरअली के साथ महाराज शिवदत्त के पास पहुँचा।
बाकरअली–महाराज, देखिए, ये लोग झगड़ा मचाते हैं!
भैरोंसिंह-जी हाँ, कोई अपनी जमा माँगे तो कहिये, झगड़ा मचाते हैं।
शिवदत्तसिंह-क्या मामला है?
भैरोंसिंह–महाराज मुझसे सुनिये! जब से हमारे सरकार से और आपसे सुलह हो गई और हम लोग छोड़ दिये गए तो हम लोगों की वे चीजें भी मिल जानी चाहिए जो कैद होते समय जब्त कर ली गई थीं।
शिवदत्तसिंह—क्यों नहीं मिलेंगी?
भैरोंसिंह-ईश्वर आपको सलामत रक्खे! क्या इन्साफ किया है! आगे सुनिए, जब हम लोगों ने अपनी चीजें मियाँ बाकर से मांगी, तो बस बटुआ और खंजर तो दे दिया मगर बटुए में जो कुछ रकम थी, गायब कर गए। दो-दो चार-चार अशर्फियाँ और दस-दस बीस-बीस रुपये तो छोड़ दिये, बाकी अपनी कब्र में गाड़ आये! अब इन्साफ आपके हाथ है!
शिवदत्तसिंह-(बाकर से) क्यों जी, यह क्या मामला है?
बाकरअली–महाराज, ये सब झूठे हैं।
भैरोंसिंह-जी हाँ, हम सबके सब झूठे हैं और आप अकेले सच्चे हैं?
शिवदत्तसिंह–(भैरों से) खैर, जाने दो, तुम लोगों का जो कुछ गया है हमसे लेकर अपने घर जाओ, हम बाकर से समझ लेंगे।
भैरोंसिंह-महाराज, सौ-सौ अफियाँ तो इन लोगों की गई हैं और एक पोटली जवाहिरात की मेरी गई है। अब बहुत बखेड़ा कौन करे बस एक हजार अशर्फियाँ मँगवा दीजिये, तो हम लोग अपने घर का रास्ता लें। रकम तो ज्यादे गई है मगर आपका क्या कसूर!