पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/४९

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भैरोंसिंह-इसमें कोई शक नहीं कि हमारे साथियों में से किसी ने यहाँ के किसी मुड्ड को पकड़ पाया है और इनको कहला भेजा है कि जब तक हमारे ऐयार चुनार न पहुँच जाएँगे उसको न छोड़ेंगे। बस, इसी से ये बातें बनाई जा रही हैं जिसमें हम लोग जल्दी चुनार पहुँचें।

बद्रीनाथ-शाबाश, बहुत ठीक सोचा। इसमें कोई शक नहीं। मैं समझता हूँ कि शिवदत्त की जोरू या लड़का या लड़की पकड़ी गई है तभी वह इतना कर रहा है, नहीं तो दूसरे की वह परवाह करने वाला नहीं है, जिस पर हम लोगों के मुकाबिले में।

भैरोंसिंह-बस-बस, यही बात है! और अब हम लोग सीधे चुनार क्यों जाने लगे, जब तक कुछ दक्षिणा न ले लें।

बद्रीनाथ–देखो तो, क्या दिल्लगी मचाता हूँ।

भैरोंसिंह-(हँस कर) मैं तो शिवदत्त से साफ कहूँगा कि मेरे पैरों में दर्द है, तीन महीने में भी चुनार नहीं पहुँच सकता, घोड़े पर सवार होना मुश्किल है, बैल की सवारी से कसम खा चुका हूँ, पालकी पर घायल बीमार या अमीर लोग चढ़ते हैं, बस बिना हाथी के मेरा काम नहीं चलता, सो भी बिना हौदे के चढ़ने की मुझे आदत नहीं। तेजसिंह दीवान का लड़का, बिना चाँदी-सोने के हौदे पर चढ़ नहीं सकता!

चुन्नीलाल-भाई बाकर ने मुझे बेढब छकाया है। मैं तो जब तक बाकर की आधा माशे नाक न ले लूँगा यहाँ से टलने वाला नहीं, चाहे जान रहे या जाय।

चुन्नीलाल की बात सुनकर सभी हँस पड़े और देर तक इसी तरह की बातचीत करते रहे, तब तक बाकरअली भी इन सबके बटुए और खंजर लिए हुए आ पहुँचा।

बाकरअली—लो साहबो, ये आपके बटुए और खंजर हाजिर हैं।

बद्रीनाथ-क्यों यार, कुछ चुराया तो नहीं! और तो खैर बस, मुझे अपनी अशर्फियों का धोखा है, हम लोगों के बटुए में खूब मजेदार चमकती हुई अशर्फियाँ थीं।

बाकरअली-अब लगे झूठ-मूठ का बखेड़ा मचाने।

रामनारायण—(मुँह बना कर) हैं, सच कहना! इन बातों से तो मालूम होता है कि अशर्फियाँ डकार गये! (पन्नालाल वगैरह की तरफ देख कर) लो भाइयो, अपनी चीजें देख लो।

पन्नालाल-देखें क्या? हम लोग जब चुनार से चले थे तो सौ-सौ अशर्फियाँ सब को खर्च के लिए मिली थीं। वे सब ज्यों-की-त्यों बटुए में मौजूद थीं।

भैरोंसिंह-भाई, मेरे पास तो अशर्फियाँ नहीं थीं, हाँ, एक छोटी-सी पोटली जवाहिरात की जरूर थी, सो गायब है। अब कहिए, इतनी बड़ी रकम छोड़कर कैसे चुनार जाऊँ?

बद्रीनाथ-अच्छी दिल्लगी है! दोनों राजाओं में सुलह हो गई और इस खुशी में लुट गए हम लोग! चलो, एक दफे महाराज शिवदत्त से अर्ज करें। अगर सुनेंगे तो बेहतर है, नहीं तो इसी जगह अपना गला काटकर रख जायेंगे, धनदौलत लुटा मैं कर चुनार जाना हमें मंजूर नहीं!

बाकरअली हैरान कि इन लोंगों ने अजब ऊधम मचा रक्खा है। कोई कहता है