पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
47
 


नहीं, यहाँ तो देखिये सामने सूर्यमुखी के कितने ही पेड़ लगे हैं जिनके बड़े-बड़े फूल अस्त होते हुए दिवाकर की तरफ पीठ किए हसरत-भरी निगाहों से देखती हुई उस हसीन नाजनीन के अलौकिक रूप की छटा देख रहे हैं जो उस बाग के बीचोंबीच बने हुए कमरे की छत पर खड़ी उसी तरफ देख रही है जिधर सूर्य भगवान अस्त होते दिख रहे हैं। उधर ही से बाग में आने का रास्ता है। मालूम होता है वह किसी आने वाले की राह देख रही है, तभी तो सूर्य की किरणों को सह कर भी एकटक उधर ही ध्यान लगाये है।

इस कमसिन परीजमाल का चेहरा पसीने से भर गया मगर किसी आने वाले की सूरत न देख पड़ी। घबरा कर बायें हाथ अर्थात् दक्खिन तरफ मुड़ी और उस बनावटी छोटे से पहाड़ को देखकर दिल बहलाना चाहा जिसमें रंग-बिरंगे खुशनुमा पत्तों वाले करोटन, कौलियस, बरबीना, बिगूनिया, मौस इत्यादि पहाड़ों पर के छोटे-छोटे पौधे बहुत ही कारीगरी से लगाये हुए थे, और बीच में मौके-मौके से घुमा-फिरा कर पेड़ों को तरी पहुँचाने और पहाड़ी की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए नहर काटी हुई थी, ऊपर ढाँचा खड़ा करके निहायत खूबसूरत रेशमी जाल इसलिए डाला हुआ था कि हर तरह की बोलियों से दिल खुश करने वाली उन रंग-बिरंगी नाजुक चिड़ियों के उड़ जाने का खौफ न रहे जो उनके अन्दर छोड़ी हुई हैं और इस समय शाम होते देख अपने घोंसलों में, जो पत्तों के गुच्छों में बनाए हैं, जा बैठने के लिए उतावली हो रही हैं।

हाय, इस पहाड़ी की खूबसूरती से भी उसका परेशान और किसी की जुदाई में व्याकुल दिल न बहला, लाचार छत के ऊपर की तरफ खड़ी हो उन तरह-तरह के नक्शों वाली क्यारियों को देख अपने घबड़ाये हुए दिल को फुसलाना चाहा, जिनमें नीले, पीले, हरे, लाल, चौरंगे नाजुक मौसमी फूलों के छोटे-छोटे तख्ते सजाये हुए थे, जिनके देखने से वेशकीमत गलीचे का गुमान हो रहा था और उसी के बीच में एक चक्करदार फव्वारा छूट रहा था जिसकी बारीक धारों का जाल दूर-दूर तक फैल रहा था। रंग-बिरंगी तितलियाँ उड़-उड़कर उन रंगीन फूलों पर इस तरह वैठती थीं कि फूलों में और उनमें बिल्कुल फर्क नहीं मालूम पड़ता था, जब तक वे फिर से उड़कर किसी दूसरे फूलों के गुच्छे पर न जा बैठतीं।

इन फूलों और फव्वारों के छींटों ने भी उसके मन की कली न खिलाई, लाचार वह पूरब तरफ आई और अपनी उन सखियों की कार्रवाई देखने लगी जो चुन-चुन कर खुशबूदार फूलों के गजरों और गुच्छों के बनाने में अपने नाजुक हाथों को तकलीफ दे रही थीं। कोई अंगूर की टट्टियों में घुसकर लाल पके हुए अंगूरों की ताक में थी, कोई पके हुए आम तोड़ने की धुन में उन पेड़ों की डालियों तक लग्घे पहुँचा रही थी जिनके नीचे चारों तरफ गड्ढे खुदवा कर इसलिए जल से भरवा दिये गये थे कि पेड़ से गिरे हुए आम चुटीले न होने पावें।

अब सूर्य की लालिमा बिल्कुल जाती रही और धीरे-धीरे अँधेरा होने लगा। वह बेचारी किसी तरह अपने दिल को न बहला सकी, बल्कि अँधेरे में बाग के चारों तरफ के बड़े-बड़े पेड़ों की सूरत डरावनी मालूम होने लगी, दिल की धड़कन बढ़ती ही