पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/६५

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"बहिन, क्या है जो इस वक्त यहाँ आई हो? तुम्हारे चेहरे पर तरवुद की निशानी पाई जाती है!"

माधवी-क्या कहूँ बहिन, इस समय वह बात हुई जिसकी कभी उम्मीद न थी!

ललिता-सो क्या, कुछ कहो तो!

माधवी-चलो बैठो, कहती हूँ, इसीलिए तो आई हूँ।

बैठने के बाद कुछ देर तक तो माधवी चुप रही, इसके बाद इन्द्रजीतसिंह से जो कुछ बातचीत हुई थी कहकर बोली, "इसमें कोई शक नही कि किशोरी का कोई दूत यहाँ आ पहुँचा और उसी ने यह सब भेद खोला है। मैं तो उसी समय खटकी थी जब उनको गीले कपड़े पहने सुरंग के मुंह पर देखा था। बड़ी ही मुश्किल हुई, मैं इनको यहाँ से बाहर अपने महल में भी नहीं ले जा सकती, क्योंकि वह चाण्डाल सुनेगा तो पूरी दुर्गत कर डालेगा, और मैं उस पर किसी तरह का दबाव भी नहीं डाल सकती, क्योंकि राज्य का काम बिल्कुल उसी के हाथ में है, जब चाहे चौपट कर डाले! जब राज्य ही नष्ट हुआ तो फिर यह सुख कहाँ? अभी तक तो इन्द्रजीतसिंह का हाल उसे बिल्कुल नहीं मालूम है मगर अब क्या होगा सो नहीं कह सकती!"

माधवी घण्टे भर तक अपनी चालाक सखियों से राय मिलाती रही, आखिर जो कुछ करना था उसे निश्चय कर वहाँ से उठी और उस कमरे में पहुँची जिसमें इन्द्रजीतसिंह को छोड़ आई थी।

जब तक माधवी अपनी सखियों के साथ बैठी बातचीत करती रही, तब तक हमारे इन्द्रजीत सिंह भी अपने ध्यान में डूबे रहे। अब माधवी के साथ उन्हें कैसा बर्ताव करना चाहिए और किस चालाकी से अपना पल्ला छुड़ाना चाहिए सो सब उन्होंने सोच लिया और उसी ढंग पर चलने लगे।

जब माधवी इन्द्रजीत के पास आई तो उन्होंने पूछा, "क्यों, एकदम घबड़ा कर कहाँ चली गई थीं?"

माधवी-न मालूम क्यों जी मिचला गया था, इसीलिए दौड़ी चली गई। कुछ गरमी भी मालूम होने लगी, जाकर एक के की, तब होश ठिकाने हुए।

इन्द्रजीतसिंह-अब तबीयत कैसी है?

माधवी-अब तो अच्छी है।

इसके बाद इन्द्रजीतसिंह ने कुछ छेड़-छाड़ न की और हंसी-खुशी में दिन बिता दिया, क्योंकि जो कुछ करना था वह तो दिल में था। जाहिर में तकरार कर माधवी के दिल में शक पैदा करना मुनासिब न समझा।

माधवी का तो मामूल ही था कि वह शाम को चिराग जले बाद इन्द्रजीतसिंह पूछ कर दो घण्टे के लिए न मालूम किस राह से कहीं जाया करती थी। आज भी अपने वक्त पर उसने जाने का इरादा किया और इन्द्रजीतसिंह से छुट्टी माँगी।

इन्द्रजीतसिंह—न मालूम क्यों तुमसे कुछ ऐसी मोहब्बत हो गई है कि एक पल को भी आँखों के सामने से दूर जाने देने को जी नहीं चाहता। मुझे उम्मीद है कि तुम मेरी बात मान लोगी और कहीं जाने का इरादा न करोगी