पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/६७

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उसने अपने आँचल के साथ बँधी ताली से एक आलमारी खोली और उसमें से एक लम्बी चाभी निकाल फिर इन्द्रजीत के पास आई तथा कुछ देर तक खड़ी रह कर वह सो रहे हैं इस बात का निश्चय कर लिया। इसके बाद उसने वह शमादान गुलकर दिया जो एक तरफ खूबसूरत चौकी के ऊपर जल रहा था।

माधवी की यह सब कार्रवाई इन्द्रजीतसिंह देख रहे थे। जब उसने शमादान गुल किया और कमरे के बाहर जाने लगी वह अपनी चारपाई से उठ खड़े हुए और दबे कदम तथा अपने को हर तरह से छिपाये हुए उसके पीछे रवाना हुए।

सोने वाले कमरे से बाहर निकल माधवी एक दूसरी कोठरी के पास पहुँची और उसी चाभी से जो उसने आलमारी में से निकाली थी उस कोठरी का ताला खोला, मगर अन्दर जाकर फिर बन्द कर लिया। कुँअर इन्द्रजीतसिंह इससे ज्यादा कुछ न देख सके और अफसोस करते हुए उसी कमरे की तरफ लौटे जिसमें उनका पलंग था।

अभी कमरे के दरवाजे तक पहुँचे भी न थे कि पीछे से किसी ने उनके मोढ़े पर हाथ रक्खा। वे चौंके और पीछे फिर कर देखने लगे। एक औरत नजर पड़ी मगर उसे किसी तरह पहचान न सके। उस औरत ने हाथ के इशारे से उन्हें मैदान की तरफ चलने के लिए कहा और इन्द्रजीतसिंह भी बेखटके उसके पीछे मैदान में दूर तक चले गये। वह औरत एक जगह खड़ी हो गई और बोली, "क्या तुम मुझे पहचान सकते हो?" इसके जवाब में इन्द्रजीतसिंह ने कहा, "नहीं, तुम्हारी सी काली औरत तो आज तक मैंने देखी ही नहीं!"

समय अच्छा था, आसमान पर बादल के टुकड़े इधर-उधर घूम रहे थे, चन्द्रमा निकला हुआ था जो कभी-कभी बादलों में छिप जाता और थोड़ी ही देर में फिर साफ दिखाई देता था। वह औरत बहुत ही काली थी और उसके कपड़े भी गीले थे। इन्द्रजीतसिंह उसे पहचान न सके, तब उसने अपना बाजू खोला और एक जख्म का दाग उन्हें दिखा कर फिर पूछा, "क्या अब भी तुम मुझे नहीं पहचान सकते?"

इन्द्रजीतसिंह-(खुश होकर) क्या मैं तुम्हें चाची कहकर पुकार सकता हूँ?

औरत–हाँ, बेशक पुकार सकते हो।

इन्द्रजीतसिंह-अब मेरी जान बची, अब मैं समझा कि यहाँ से निकल सकूँगा।

औरत—अब तो तुम यहाँ से बखूबी निकल जा सकते हो क्योंकि जिस राह से माधवी जाती है वह तुमने देख ही लिया है और अब उस जगह को भी बखूबी जान गये होगे जहाँ वह ताली रखती है, मगर खाली निकल भागने में मजा नहीं है। मैं चाहती हूँ कि इसके साथ ही कुछ फायदा भी हो। आखिर मेरा यहाँ आना ही किस काम का होगा और उस मेहनत का नतीजा भी क्या निकलेगा जो तुम्हारा पता लगाने के लिए हम लोगों ने की है? सिवाय इसके तुम यह भी क्यों कर जान सकते हो कि माधवी कहाँ जाती है या क्या करती है?

इन्द्रजीतसिंह-हाँ बेशक, इस तरह तो सिवाय निकल भागने के और कोई फायदा नहीं हो सकता, फिर जो हुक्म करो, मैं तैयार हूँ।

औरत-जब माधवी उस राह से बाहर जाय, तो उसके पीछे हो जाने से उसका