पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/८८

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झाँकने के लिए कहा। कोतवाल साहब ने झांककर देखा, साथ ही वे एकदम चौंक पड़े और मारे खुशी के भरे हुए गले से चिल्ला कर बोले, "अहा हा, मेरी किस्मत जागी! बेशक वह रानी माधवी ही तो है!"

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कमला को विश्वास हो गया कि किशोरी को कोई धोखा देकर ले भागा। वह उस बाग में बहुत देर तक न ठहरी, ऐयारी के सामान से दुरुस्त थी ही, एक लालटेन हाथ में लेकर वहां से चल पड़ी और बाग से बाहर हो चारों तरफ घूम-घूमकर किसी ऐसे निशान को ढूँढ़ने लगी जिससे यह मालूम हो कि किशोरी किस सवारी पर यहाँ से गई है, मगर जब तक वह उस आम की बारी में न पहुँची तब तक सिवाय पैरों के चिह्न के और किसी तरह का कोई निशान जमीन पर दिखाई न पड़ा।

बरसात का दिन था और जमीन अच्छी तरह पर नम हो गई थी, इसीलिए आम की बारी में घूम-घूमकर कमला ने मालूम कर लिया कि किशोरी यहाँ से रथ पर सवार होकर गई है और उसके साथ में कई सवार भी हैं क्योंकि रथ के पहियों का दोहरा निशान और बैलों के खुर जमीन पर साफ मालूम पड़ते थे, इसी तरह घोड़ों की टापों के निशान भी अच्छी तरह दिखाई देते थे।

कमला कई कदम उस निशान की तरफ चली गयी जिधर रथ गया था और बहुत जल्द मालूम कर लिया कि किशोरी को ले जाने वाले किस तरफ गये हैं। इसके बाद वह पीछे लौटी और सीधे अस्तबल में पहुँच एक तेज घोड़े पर बहुत जल्द चारजामा कसने का हुक्म दिया।

कमला का हुक्म ऐसा न था कि कोई उससे इन्कार करता। घोड़ा बहुत जल्द कस कर तैयार किया गया और कमला उस पर सवार हो तेजी के साथ उस तरफ रवाना हुई जिधर रथ पर सवार होकर किशोरी के जाने का उसे विश्वास हो गया था। पाँच कोस बराबर चले जाने के बाद कमला एक चौराहे पर पहुँची, जहाँ से बाईं तरफ का रास्ता चुनार को गया था, दाईं तरफ की सड़क रीवाँ होते हुए गयाजी तक पहुँची थी, तथा सामने का रास्ता एक भयानक जंगल से होता हुआ कई तरफ को फूट गया था।

इस चौमुहानी पर पहुँच कर कमला रुकी और सोचने लगी कि किधर जाऊँ? अगर चुनार वाले किशोरी को ले गये होंगे, तो इसी बाईं तरफ से गये होंगे, और किशोरी की दुश्मन माधवी ने उसे फंसाया होगा तो रथ दाहिनी तरफ से गयाजी को गया होगा, सामने की सड़क से रथ ले जाने वाला तो कोई खयाल में नहीं आता क्योंकि यह जंगल का रास्ता बहुत ही खराब और पथरीला है।

चन्द्रमा निकल आया था और रोशनी अच्छी तरह फैल चुकी थी। कमला घोड़े से नीचे उतर गयी और दाहिनी तरफ जमीन पर रथ के पहिये का दाग ढूँढ़ने लगी मगर