हुआ कि किशोरी इसी राह से गयी है।
हरनामसिंह-मगर मैं तो यही समझता हूँ कि रथ इसी राह से गया है और किशोरी का साथ छोड़ कोई दूसरी कार्रवाई करने के लिए ललिता लौटी थी।
कमला-शायद ऐसा ही हो।
और थोड़ी दूर जाने के बाद पैर की एक पाजेब जमीन पर पड़ी हुई दिखाई दी। हरनामसिंह ने उसे देखते ही उठा लिया और कहा, "बेशक किशोरी इसी राह से गयी है, इस पाजेब को मैं खूब पहचानता हूँ।"
कमला-अब तो मुझे भी निश्चय हो गया कि किशोरी इधर ही से गयी है।
हरनामसिंह–हाँ, जब उसे मालूम हो गया कि उसने धोखा खाया और दुश्मनों के फंदे में पड़ गयी तब उसने यह पाजेब चुपके से जमीन पर फेंक दी।
कमला-इसलिए कि वह जानती थी कि उसकी खोज में बहुत से आदमी निकलेंगे और इधर आकर इस पाजेब को देखेंगे तो जान जायेंगे कि किशोरी इधर ही गयी है।
हरनामसिंह-मैं खयाल करता हूँ कि आगे चलकर किशोरी की फेंकी हुई और भी कोई चीज हम लोग जरूर देखेंगे।
कमला-बेशक ऐसा ही होगा।
कुछ आगे जाकर दूसरी पाजेब और उससे थोड़ी दूरी पर किशोरी के और कुछ गहने इन लोगों ने पाये। अब कमला को किशोरी के इसी राह से जाने का पूरा विश्वास हो गया और वे दोनों बेधड़क कदम बढ़ाते हुए राजगृह की तरफ रवाना हुए।
6
कुँअर इन्द्रजीतसिंह अभी तक उस रमणीक स्थान में विराज रहे हैं। जी कितना ही बेचैन क्यों न हो मगर उन्हें लाचार माधवी के साथ दिन काटना ही पड़ता है। खैर, जो होगा देखा जायेगा, मगर इस समय दो पहर दिन बाकी रहने पर भी कुँअर इन्द्रजीत-सिंह कमरे के अन्दर सुनहरे पायों की चारपाई पर आराम कर रहे हैं और एक लौंडी धीरे-धीरे पंखा झल रही है। हम ठीक नहीं कह सकते कि उन्हें नींद दबाये हुए है या जानबूझकर बहठियाये पड़े हैं और अपनी बदकिस्मती के जाल को सुलझाने की तरकीब सोच रहे हैं। खैर, इन्हें इसी तरह पड़े रहने दीजिए और आप जरा तिलोत्तमा के कमरे में चलकर देखिए कि वह माधवी के साथ किस तरह की बातचीत कर रही है। माधवी का हँसता हुआ चेहरा कहे देता है कि बनिस्बत और दिनों के आज वह खुश है, मगर तिलोत्तमा के चेहरे से किसी तरह की खुशी नहीं मालूम होती।"
माधवी ने तिलोत्तमा का हाथ पकड़कर कहा, "सखी, आज तुझे उतना खुश नहीं पाती हूँ जितनी मैं खुद हूँ।"
तिलोत्तमा–तुम्हारा खुश होना बहुत ठीक है!