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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/९२

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माधवी-तो क्या तुम्हें इस बात की खुशी नहीं है कि किशोरी मेरे फन्दे में फँस गयी और एक कैदी की तरह मेरे यहाँ तहखाने में बन्द है?

तिलोत्तमा–इस बात की तो मुझे भी खुशी है।

माधवी-तो रंज किस बात का है? हाँ समझ गयी, अभी तक ललिता के लौटकर न आने का बेशक तुम्हें दुःख होगा।

तिलोत्तमा–ठीक है, मैं ललिता के बारे में भी बहुत-कुछ सोच रही हूँ। मुझे तो विश्वास हो गया है कि उसे कमला ने पकड़ लिया।

माधवी-तो उसे छुड़ाने की फिक्र करनी चाहिए।

तिलोत्तमा–मुझे इतनी फुरसत नहीं है कि उसे छुड़ाने के लिए जाऊँ क्योंकि मेरे हाथ-पैर किसी दूसरे ही तरदुद ने बेकार कर दिये हैं जिनकी तुम्हें जरा-भी खबर नहीं, अगर खबर होती तो आज तुम्हें भी अपनी ही तरह उदास पाती।

तिलोत्तमा की इस बात ने माधवी को चौंका दिया और वह घबराकर तिलोत्तमा का मुँह देखने लगी।

तिलोत्तमा–मुँह क्या देखती है, मैं झूठ नहीं कहती। तू तो अपने ऐश-आराम में ऐसी मस्त हो रही है कि दीन-दुनिया की खबर नहीं। तू जानती ही नहीं कि दो-चार दिन में ही तुझ पर कैसी आफत आने वाली है। क्या तुझे विश्वास हो गया कि किशोरी तेरी कैद में रह जाएगी? कुछ बाहर की भी खबर है कि क्या हो रहा है? क्या बदनामी ही उठाने के लिए तू गया का राज्य कर रही है? मैं पचास दफे तुझे समझा चुकी कि अपने चाल-चलन को दुरुस्त कर, मगर तूने एक न सुनी, लाचार तुझे तेरी मर्जी पर छोड़ दिया। और प्रेम के सबब मैं तेरा हुक्म मानती आयी, मगर अब मेरे सम्हाले नहीं सम्हलता!

माधवी-तिलोत्तमा, आज तुझे क्या हो गया है जो इतना कूद रही है? ऐसी कौन-सी आफत आ गयी है जिसने तुझे बदहवास कर दिया है? क्या तू नहीं जानती कि दीवान साहब इस राज्य का इन्तजाम कसी अच्छी तरह कर रहे हैं और सेनापति तथा कोतवाल अपने काम में कितने होशियार हैं? क्या इन लोगों के रहते हमारे राज्य में कोई विघ्न डाल सकता है?

तिलोत्तमा–यह जरूर ठीक है कि इन तीनों के रहते कोई इस राज्य में विघ्न नहीं डाल सकता, लेकिन तुझे तो इन्हीं तीनों की खबर नहीं! कोतवाल साहब जहन्नुम में चले ही गये, दीवान साहब और सेनापति साहब भी आजकल में जाया चाहते हैं बल्कि चले भी गये हों तो ताज्जुब नहीं।

माधवी-यह तू क्या कह रही है?

तिलोत्तमा–जी हाँ, मैं बहुत ठीक कहती हूँ। बिना परिश्रम ही यह राज्य वीरेन्द्रसिंह का हुआ चाहता है। इसीलिए कहती थी कि इन्द्रजीतसिंह को अपने यहाँ मत फँसा, उनका एक-एक ऐयार आफत का परकाला है। मैं कई दिनों से उन लोगों की कार्रवाई देख रही हूँ। उन लोगों को छेड़ना ऐसा है जैसा आतिशबाजी की चरखी में आग लगा देना।

च॰ स॰-1-5