पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/९८

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यही तालाब उस रमणीक स्थान में पहुंचने का रास्ता था जिसमें कुंअर इन्द्रजीतसिंह कैद हैं। इसका दूसरा मुहाना वही पानी वाली सुरंग थी जिसमें कुँअर इन्द्रजीतसिंह घुसे थे और कुछ दूर जाकर जल से भरी देख लौट आए थे या जिसको तिलोत्तमा ने अब पत्थर के ढों कों से बन्द करा दिया है।

जिस पहाड़ी के नीचे यह तालाब था उसी पहाड़ी के दूसरी तरफ वह गुप्त स्थान था जिसमें इन्द्रजीतसिंह कैद थे। इस राह से हरएक का आना मुश्किल था, हाँ, ऐयार लोग अलबत्ता जा सकते थे जिनका दम खूब सधा हुआ था और तैरना बखूबी जानते थे, पर इस तालाब की राह से वहाँ तक पहुँचने के लिए कारीगरों ने एक सुभीता भी किया था। उस सुरंग से इस तालाब की जाट (लाट) तक भीतर-भीतर एक मजबूत जंजीर लगी हुई थी जिसे थाम कर यहां तक पहुँचने में बड़ा ही सुभीता होता था।

कोतवाल साहब को गिरफ्तार करने के बाद कई दफे चपला ने चाहा कि इस तालाब की राह इन्द्रजीतसिंह के पास पहुँच कर इधर के हाल-चाल की खबर करे, मगर ऐसा न कर सकी, क्योंकि तिलोत्तमा ने सुरंग का मुंह बन्द करा दिया था। अब हमारे ऐयारों को निश्चय हो गया कि दुश्मन सँभल बैठा और उसको हम लोगों की खबर हो गई। इधर कोतवाल साहब के गिरफ्तार होने से और उनके सिपाहियों की लाश मिलने पर शहर में हलचल मच रही थी। दीवान साहब वगैरह इस खोज में परेशान होरहे थे कि हम लोगों का दुश्मन ऐसा कौन आ पहुँचा जिसने कोतवाल साहब को गायब कर दिया।

कई रोज के बाद एक दिन आधी रात के समय भैरोंसिंह, तारासिंह, पण्डित बद्रीनाथ, देवीसिंह और चपला इस तालाब पर बैठे आपस में सलाह कर रहे थे और सोच रहे थे कि अब कुँअर इन्द्रजीतसिंह के पास किस तरह पहुंचना चाहिए और उनके छुड़ाने की क्या तरकीब करनी चाहिए।

कमला-अफसोस, मैंने जो ताली तैयार की थी वह अपने साथ लेती आई, नहीं, तो इन्द्रजीतसिंह उस ताली से जरूर कुछ-न-कुछ काम निकालते। अब हम लोगों का वहाँ तक पहुंचना बहुत मुश्किल हो गया।

बद्रीनाथ-इस पहाड़ी के उस पार ही तो इन्द्रजीतसिंह हैं! चाहे यह पहाड़ी कैसी ही बेढब क्यों न हो, मगर हम लोग उस पार पहुँचने के लिए चढ़ने-उतरने की जगह बना ही सकते हैं।

भैरोंसिंह-मगर यह काम कई दिनों का है।

तारा-सब से पहले इस बात की निगरानी करनी चाहिए कि माधवी ने जहाँ इन्द्रजीतसिंह को कैद कर रखा है वहाँ कोई ऐसा मर्द न पहुँचने पावे जो उन्हें सता सके, औरतें यदि पाँच सौ भी होंगी तो कुछ कर न सकेंगी।

देवीसिंह-कुँअर इन्द्रजीतसिंह ऐसे बोदे नहीं हैं कि यकायक किसी के फंदे में आ जावें, मगर फिर भी लोगों को होशियार रहना चाहिए। आज-कल में उन तक पहुँचने का मौका नहीं मिलेगा, तो हम इस घर को उजाड़ डालेंगे और दीवान साहब वगैरह को जहन्नुम में पहुँचा देंगे।