पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 1.djvu/९९

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भैरोंसिंह-अगर कुमार को यह मालूम हो गया कि हम लोगों के आने-जाने का रास्ता बन्द कर दिया गया तो वे चुप न बैठे रहेंगे, कुछ-न-कुछ फसाद जरूर मचावेंगे।

तारा–बेशक।

इसी तरह की बहुत-सी बातें वे लोग कर रहे थे कि तालाब के उस पार जल में उतरता हुआ एक आदमी दिखाई पड़ा। ये लोग टकटकी बाँध उसी तरफ देखने लगे। वह आदमी जल में कूदा और जाट के पास पहुँच कर गोता मार गया, जिसे देख भैरोंसिंह ने कहा, "बेशक यह कोई ऐयार है जो माधवी के पास जाना चाहता है।"

चपला-मगर यह माधवी का ऐयार नहीं है, अगर माधवी की तरफ का होता तो रास्ता बन्द होने का हाल इसे मालूम होता।

भैरोंसिंह-ठीक है।

तारासिंह–अगर माधवी की तरफ का नहीं तो हमारे कुमार का पक्षपाती होगा।

देवीसिंह-वह लौटे तो अपने पास बुलाना चाहिए।

थोड़ी ही देर बाद वह आदमी जाट के पास जाकर निकला और जाट थाम जरा सुस्ताने लगा, कुछ देर बाद किनारे पर चला आया और तालाब के ऊपर वाले चौतरे पर बैठ कर कुछ सोचने लगा।

भैरोंसिंह अपने ठिकाने से उठे और धीरे-धीरे उस आदमी की तरफ चले। जब उसने अपने पास किसी को आते देखा तो उठ खड़ा हुआ, साथ ही भैरोंसिंह ने आवाज दी, "डरो मत, जहाँ तक मैं समझता हूँ तुम भी उसी की मदद किया चाहते हो जिसके छुड़ाने की फिक्र में हम लोग हैं।"

भैरोंसिंह के इतना कहते ही उस आदमी ने खुशी-भरी आवाज से कहा, "वाह-वाह-वाह, आप भी यहाँ पहुँच गये! सच पूछो तो यह सब फसाद तुम्हारा ही खड़ा किया हुआ है।"

भैरोंसिंह-जिस तरह मेरी आवाज तूने पहचान ली उसी तरह तेरी मुहब्बत ने मुझे भी कह दिया कि तू कमला है।

कमला-बस-बस, रहने दीजिये, आप लोग कितने बड़े मुहब्बती हैं इसे मैं खूब पर बैठ जानती हूँ।

भैरोंसिंह–जानती हो तो ज्यादा क्या कहूँ?

कमला-कहने का मुँह भी तो हो!

भैरोंसिंह–कमला, मैं तो यही चाहता हूँ कि तुम्हारे पास बैठा बातें ही करता रहूँ मगर इस समय मौका नहीं है क्योंकि (हाथ का इशारा करके) पण्डित बद्रीनाथ, देवीसिंह, तारासिंह, तारासिंह और माँ वहीं बैठी हुई हैं। तुमको तालाब में जाते और नाकाम लौटते हम लोगों ने देख लिया और इसी से हम लोगों ने मालूम कर लिया कि तुम माधवी की तरफदार नहीं हो, अगर होती तो सुरंग के बन्द किये जाने का हाल तुम्हें जरूर मालूम होता।

कमला-क्या तुम्हें सुरंग बन्द करने का हाल मालूम है?