पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
10
 

की शोभा देखकर दिल बहलाते रहे, जब सूर्य अस्त हो गया तो कमलिनी भी वहाँ पहुँची और कुमार के पास खड़ी होकर बातचीत करने लगी।

कमलिनी––यहाँ से अच्छी बहार दिखाई देती है।

कुमार––ठीक है मगर यह छटा मेरे दिल को किसी तरह नहीं बहला सकती।

कमलिनी––सो क्यों?

कुमार––तरह-तरह की फिक्रों और तरद्दुदों ने मुझे दुखी कर रखा है, बल्कि यहाँ आने और तुम्हारे मिलने से तरद्दुद और भी ज्यादा हो गया।

कमलिनी––यहाँ आकर कौन सी फिक्र बढ़ गई?

कुमार––यह तो तब कह सकता हूँ जब कुछ तुम्हारा हाल मुझे मालूम हो। अभी तो मैं यह भी नहीं जानता कि तुम कौन हो और कहाँ की रहने वाली हो और इस मकान में आके रहने का सबब क्या है।

कमलिनी––कुमार, मुझे आपसे बहुत बातें कहनी हैं। इसमें कोई शक नहीं कि मेरे बारे में आप तरह-तरह की बातें सोचते होंगे, कभी मुझे खैर-ख्वाह तो कभी बदख्वाह समझते होंगे, बल्कि बदख्वाह समझने का मौका ही ज्यादा मिलता होगा। अक्सर उन लोगों ने जो मुझे जानते हैं, मुझे शैतान और खूनी समझ रखा है, और इसमें उनका कोई कसूर भी नहीं। मैं उन लोगों का जिक्र इस समय केवल इसीलिए करती हूँ कि शायद उन लोगों ने, जो केवल दो-तीन ऐयार लोग हैं, कुछ चर्चा आपसे की हो।

कुमार––नहीं, मैंने किसी से कभी तुम्हारा जिक्र नहीं सुना।

कमलिनी––खैर, ऐसा मौका न पड़ा होगा। पर मेरा मतलब यह है कि जब तक मैं अपने मुँह से कुछ न कहूँगी, मेरे बारे में कोई भी अपनी राय ठीक नहीं कह सकता और...

इतने ही में सीढ़ियों पर किसी के पैरों की आवाज मालूम हुई जिसे सुनकर दोनों चौंके और उसी तरफ देखने लगे।

कुमार––इस मकान में तो केवल तुम्हीं रहती हो?

कमलिनी––नहीं, और भी कई आदमी रहते हैं, मगर वे लोग उस समय नहीं थे जब आप आए थे।

दो लौंडियाँ आती हुई दिखाई पड़ीं। एक के हाथ में छोटा-सा गलोचा था, दूसरी के हाथ में शमादान और तीसरी पानदान लिये हुए थी। गलीचा बिछा दिया गया, शमादान और पानदान रखकर लौंडियाँ हाथ जोड़े सामने खड़ी हो गई। कमलिनी के कहने से कुमार गलीचे पर बैठ गए और कमलिनी भी पास बैठ गई। इस समय इन तीनों लौंडियों का वहाँ पहुँचकर बातचीत में बाधा डालना कुमार को बहुत बुरा मालूम हुआ, क्योंकि वे बड़े ही गौर से कमलिनी की बातें सुन रहे थे और इस बीच में उनके दिल की अजीब हालत थी। कुमार ने कमलिनी की तरफ देख के कहा, "हाँ, तुम अपनी बातों का सिलसिला मत तोड़ो।"

कमलिनी––(लौंडियों की तरफ देखकर) अच्छा, तुम लोग जाओ! बहुत जल्दी खाने का बन्दोबस्त करो।