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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/९

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लोग किसी तरह का धोखा देना चाहती हैं। आधी घड़ी तक सोचने के बाद कुमार बँगले के बाहर निकले तो देखा कि तालाब के बाहर लगभग बीस सिपाही खड़े आपस में कुछ बातें कर रहे और घड़ी-घड़ी इसी तरफ देख रहे हैं। कुमार वहाँ से लौट आये और कमलिनी की तरफ देखकर बोले––

इन्द्रजीतसिंह––खैर, जो तुम्हारे जी में आये करो, हम इस बारे में कुछ नहीं कह सकते।

कमलिनी––करना क्या है, इन दोनों का सिर काटा जायगा।

इन्द्रजीतसिंह––खुशी तुम्हारी। मैं जरा इस तालाब के बाहर जाना चाहता। हूँ।

कमलिनी––क्यों?

इन्द्रजीतसिंह––यह समय मजेदार है। जरा मैदान की हवा खाऊँगा और उस घोड़े की भी खबर लूँगा जिस पर सवार होकर आया था।

कमलिनी––इस मकान की छत पर चढ़ने से अच्छी और साफ हवा आपको मिल सकती है। घोड़े के लिए चिन्ता न करें, या फिर ऐसा ही है तो सवेरे जाइयेगा!

न मालूम, क्या सोचकर इन्द्रजीतसिंह चुप हो रहे। कमलिनी ने उन दोनों औरतों का हाथ पकड़ा और धमकाती हुई न जाने कहाँ ले गई, इसका हाल कुमार को न मालूम हुआ और न उन्होंने जानने का उद्योग ही किया।

यद्यपि इस औरत अर्थात् कमलिनी ने कुमार की जान बचाई थी, तथापि उन्हें विश्वास हो गया कि कमलिनी ने दोस्ती की राह पर यह काम नहीं किया, बल्कि किसी मतलब से किया है। उस मकान में गुलदस्ते के नीचे से जो चिट्ठी कुमार ने पाई थी, उसके पढ़ने से कुमार होशियार हो गये थे तथा समझ गये थे कि यह मुझे किसी फरेब में फँसाना चाहती है और किशोरी के साथ भी किसी तरह की बुराई किया चाहती है। इसमें कोई शक नहीं कि कुमार इसे चाहने लगे थे और जान बचाने का बदला चुकाने की फिक्र में थे, मगर उस चिट्ठी के पढ़ते ही उनका रंग बदल गया और वे किसी दूसरी ही धुन में लग गए।

कुमार चाहते तो शायद यहाँ से निकल भागते, क्योंकि उस औरत की तरफ से होशियार हो चुके थे, मगर इस काम में उन्होंने यह समझकर जल्दी न की कि इस औरत का कुछ हाल मालूम करना चाहिए और जानना चाहिए कि यह कौन है। पर कमलिनी को कुमार के दिल की क्या खबर थी, उसने तो सोच रखा था कि मैंने कुमार पर अहसान किया है और वे किसी तौर पर मुझसे बदगुमान न होंगे।

कुमार के पास इस समय सिवाय कपड़ों के कोई चीज ऐसी न थी जिससे वे अपनी हिफाजत करते या समय पड़ने पर मतलब निकाल सकते।

कुछ दिन बाकी था जब कुमार उस मकान की छत पर चढ़ गए और चारों तरफ के पहाड़, जंगल तथा मैदान के बाहर देखने लगे। कुमार को यह जगह बहुत ही पसन्द आई और उन्होंने दिल में कहा कि यदि ईश्वर की इच्छा हुई तो सब बखेड़ों से छुट्टी पा कर किशोरी के साथ कुछ दिनों तक इस मकान में जरूर रहेंगे। थोड़ी देर तक प्रकृति