सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
100
 

छोड़ दोनों आदमी गंगा-किनारे की तरफ रवाना हुए।

बात-की-बात में दोनों गंगा-किनारे जा पहुँचे। इस समय चन्द्रमा की रोशनी अच्छी तरह फैली हुई थी। एक मढ़ी के ऊपर बैठने के बाद भूतनाथ ने बह गठरी खोली। उस बेहोश औरत के चेहर पर चन्द्रमा की रोशनी पड़ते ही भूतनाथ चौंक कर बोला, "ओफ, यह तो कमला है!"

कमला होश में लाई गई। जब उसकी निगाह भूतनाथ के ऊपर पड़ी तो वह एकदम काँप उठी। कमला को उस दिन की बात याद आ गई जिस दिन खँडहर के तहखाने में अपने चाचा शेरसिंह पास भूतनाथ को देखा था, कमला को शक हो गया कि इस समय वह जिसके हुक्म से बेहोश करके लाई गई, वह भूतनाथ ही है। कमला की दूसरी निगाह कमलिनी पर पड़ी मगर वह कमलिनी को पहचान न सकी। यद्यपि कमला कमलिनी को रोहतासगढ़ पहाड़ी पर देख चुकी थी परन्तु इस समय कमलिनी उस भयानक राक्षसी के भेष में न थी, रंग काला जरूर था, परन्तु लम्बे-लम्बे दाँत उसके मुँह में न थे, इसी से वह कमलिनी को नहीं पहचान सकी।

कमलिनी ने जब देखा कि कमला बहुत ही डरी हुई और हैरान मालूम पड़ती है तो उसने कमला का हाथ पकड़ लिया और धीरे से दवाकर कहा, "कमला, तू डर मत। हम लोगों ने इस समय तुझे एक दुश्मन के हाथ से छुड़ाया है।"

कमला––अब मेरा जी ठिकाने हुआ। मुझे उम्मीद है कि आप लोगों की तरफ से मुझे तकलीफ न पहुँचेगी। परन्तु आप लोगों को जानने के लिए मेरा जी बेचन हो रहा है।

कमलिनी––ठीक है, जरूर तेरा जी चाहता होगा कि हम लोगों का हाल जाने और इसी तरह मैं भी तुझसे बहुत-कुछ पूछना चाहती हूँ मगर इस समय केवल चार-पाँच घण्टे के लिए तुझसे जुदा होती हूँ, तब तक तू (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) इनके साथ रह। किसी तरह से डर मत, सवेरा होने के पहले ही मैं तुझसे आकर मिलूँगी और बातचीत के बाद कुँअर इन्द्रजीतसिंह के छुड़ाने का उद्योग करूँगी।

कमला––मैं आपके हुक्म के खिलाफ कुछ न करूँगी। मैं आपसे हर तरह पर भलाई की आशा रखती हूँ क्योंकि आपने मुझे एक ऐसे दुश्मन के हाथ से जिसका हाल मैं ही जानती हूँ।

कमलिनी––अच्छा, तो अब बातों में समय नष्ट करना ठीक नहीं है। (भूतनाथ की तरफ देखकर) भूतनाथ, यहाँ छोटी-छोटी बहुत-सी डोंगियाँ बँधी हुई हैं, सन्नाटा और मौका देखकर कोई एक डोंगी खोल लो और कमला को साथ लेकर गंगा-पार चले जाओ। मैं अब मनोरमा के घर जाती हूँ, वहाँ अपना मतलब साधकर सवेरा होने के पहले ही तुमसे आ मिलूँगी।

कमला––(चौंककर) क्या नाम लिया, मनोरमा! हाय-हाय, वह तो बड़ी शैतान है। हम लोगों को तो उसने तबाह कर डाला! क्या तुम उसके...

कमलिनी––डर मत कमला! मनोरमा को मैंने कैद कर लिया है और अब एक

च॰ स॰-2-6