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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/९९

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तारा––मैं भी यही कहना चाहती थी, क्योंकि खंजर और नेजे में गुण तो एक ही है फिर बोझ लेकर घूमने से क्या फायदा। यह लो खंजर, अपने पास रखो।

कमलिनी––(भूतनाथ से) तुम भी तारा के साथ जाओ और इस हरामजादी को हमारे घर पहुँचाकर बहुत जल्द लौट जाओ, तब तक मैं इसी जगह रहूँगी और तुम्हारे आते ही तुम्हें साथ लेकर काशीजी जाऊँगी। पहले तुम्हारा काम करके कुँअर इन्द्रजीतसिंह से मिलूँगी और मायारानी की मण्डली को, जिसने दुनिया में अन्धेर मचा रखा है, जहन्नुम में भेजूँगी।

भूतनाथ––(सिर झुकाकर) जो हुक्म!


5

रात आधी से कुछ ज्यादा जा चुकी है। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, कभी-कभी कुत्तों के भोंकने की आवाज के सिवाय और किसी तरह की आवाज सुनाई नहीं देती। ऐसे समय में काशी की तंग गलियों में दो आदमी, जिनमें एक औरत और दूसरा मर्द है, घूमते हुए दिखाई देते हैं। ये दोनों कमलिनी और भूतनाथ हैं जो त्रिलोचनेश्वर महादेव के पास मनोरमा के मकान पर पहुँचने की धुन में कदम बढ़ाये हुए तेजी के साथ जा रहे हैं। जब ये दोनों एक चौमुहानी के पास पहुँचे तो देखा कि दाहिनी तरफ से एक आदमी पीठ पर गट्ठर लादे आया और उसी तरफ को घूमा जिधर ये दोनों जाने वाले थे। कमलिनी ने धीरे से भूतनाथ के कान में कहा, "इस गठरी में जरूर कोई आदमी है।"

भूतनाथ––बेशक ऐसा ही है। इस आदमी की चाल पर भी मुझे कुछ शक पड़ता है। ताज्जुब नहीं कि यह मनोरमा का नौकर श्यामलाल हो।

कमलिनी––तुम्हारा शक ठीक हो सकता है क्योंकि तुम बहुत दिनों तक मनोरमा के मकान पर रह चुके हो और वहाँ के हर एक आदमी को बखूबी जानते हो।

भूतनाथ––कहो तो इसे रोकू?

कमलिनी––हाँ-हाँ रोको, जाने न पावे।

भूतनाथ लपककर उस आदमी के सामने गया और कमर से खंजर निकालकर उसके सामने चमकाया। उसकी चमक में भूतनाथ और कमलिनी ने उस आदमी को पहचान लिया, मगर वह इन दोनों को अच्छी तरह न देख सका, क्योंकि बिजली की तरह चमकने वाली रोशनी ने उसकी आँखें बन्द कर दी और वह घबराकर बैठ गया। भूतनाथ ने खंजर उसके बदन से लगाया जिसकी तासीर से वह एक दफे काँपा और बेहोश होकर जमीन पर लम्बा हो गया। भूतनाथ ने उसे उसी तरह छोड़ दिया और गठरी का कोना खोलकर देखा तो उसमें एक कमसिन औरत बँधी पाई। कमलिनी के हुक्म से भूतनाथ ने वह गठरी अपनी पीठ पर लाद ली और मनोरमा के घर का रास्ता