यहाँ पहुँच जाऊँ तो मुझे यहाँ रहने में किसी तरह का तरद्दुद न हो।
दरबान––इससे आप बेफिक्र रहें, मैं पूरा-पूरा इन्तजाम करके जाऊँगा और नागरजी को लेकर बहुत जल्दी लौटूँगा।
फाटक खोल दिया गया और कमलिनी बाग के बाहर हो गई। वह अभी बीस कदम भी आगे न गई होगी कि एक आदमी बदहवास और दौड़ता हुआ उसी बाग के फाटक पर पहुँचा और दरवाजा खुलवाने का उद्योग करने लगा। कमलिनी जान गई कि यह वही आदमी है जिसके हाथ से अभी थोड़ी ही देर पहले मैंने कमला को छुड़ाया है। कमलिनी उसी जगह आड़ में खड़ी होकर उसे देखने और कुछ सोचने लगी। जब बाग का फाटक खुल गया और वह आदमी अन्दर चला गया तो न मालूम क्या सोचती विचारती कमलिनी भी वहाँ से रवाना हुई और थोड़ी रात बाकी थी, जब कमला और भूतनाथ के पास पहुँची जो गंगा-पार उसके आने की राह देख रहे थे। कमलिनी को बहुत जल्दी लौट आते देख भूतनाथ को ताज्जुब हुआ और उसने कहा––
भूतनाथ––मालूम होता है कि कुछ काम न हुआ और आपको खाली ही लौट आना पड़ा!
कमलिनी––हाँ, इस समय तो खाली ही लौटना पड़ा, मगर काम हो जायगा। नागर घर पर मौजूद न थी, उसका आदमी उसे बुलाने के लिए गया है। मैं कल शाम तक फिर वहाँ पहुँचने का वादा कर आई हूँ। इच्छा तो यही थी कि वहाँ अटक जाऊँ क्योंकि ऐसा करने से और भी कुछ काम निकलने की उम्मीद थी, परन्तु कमला के खयाल से लौट आना पड़ा। मैं चाहती हूँ कि कमला को रोहतासगढ़ रवाना कर दूँ क्योंकि उसकी जुबानी कुछ हाल सुनकर राजा वीरेन्द्रसिंह को ढाढ़स होगी और लड़कों के सोच में बहुत व्याकुल न रहेंगे। (कमला की तरफ देख कर) तेरी क्या राय है?
कमला––जो कुछ आप हुक्म दें मैं करने को तैयार हूँ, परन्तु इस समय मैं बहुत सी बातों का असल भेद जानने के लिए बेचैन हो रही हूँ और सिवाय आपके कोई दूसरा मेरी दिलजमई नहीं कर सकता!
कमलिनी––कोई हर्ज नहीं, मैं हर तरह से तेरी दिलजमई कर दूँगी।
इतना सुनकर कमला भूतनाथ की तरफ देखने लगी। कमलिनी समझ गई कि यह निराले में मुझसे कुछ पूछना चाहती है। अस्तु, उसने भूतनाथ को वहाँ से हट जाने के लिए कहा और जब वह कुछ दूर चला गया तो कमला से बोली, "अब निराला हो गया, जो कुछ पूछना हो पूछो।"
कमला––मुझे आपका कुछ हाल भूतनाथ की जुबानी मालूम हुआ है परन्तु उस से पूरी दिलजमई नहीं होती। मुझे पूरा-पूरा पता लग चुका था कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह आपके यहाँ कैद हैं, फिर न मालूम, उन पर क्या आफत आई और उनके साथ आपने क्या सलूक किया। यद्यपि उस समय हम लोग आपके नाम से डरते थे, परन्तु जब आपने कई दफे हम लोगों के साथ नेकी की जिसका हाल आज मालूम हुआ है तो वह बात अब मेरे दिल से जाती रही, फिर भी कुँअर इन्द्रजीतसिंह के बारे में शक बना ही रहा है।