पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
103
 

कमलिनी––सुन, मैं तुझसे पूरा-पूरा हाल कहती हूँ। यह तो तुझे मालूम ही हो चुका कि मैं कमलिनी हूँ।

कमला––जी हाँ, यह तो (भूतनाथ की तरफ इशारा करके) इनकी कृपा से मालूम हो गया और इन्हीं के जुबानी यह भी जान गई कि रोहतासगढ़ में उस कब्रिस्तान के अन्दर हाथ में चमकता हुआ नेजा लेकर आप ही ने हम लोगों की मदद की थी और बेहोश करके रोहतासगढ़ किले के अन्दर पहुँचा दिया था। दूसरी दफे राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह को रोहतासगढ़ के कैदखाने से आप ही ने छुड़ाया था और तीसरी दफे उस खँडहर में यकायक विचित्र रीति से आप ही को पहुँचते हम लोगों ने देखा था।

कमलिनी––यद्यपि कुछ लोगों ने मुझे बदनाम कर रक्खा है, परन्तु वास्तव से मैं वैसी नहीं हूँ। मैं नेकी करने के लिए हरदम तैयार रहती हूँ, इसी तरह दुष्टों को मजा चखाने की भी नीयत रहती है। मैंने कुँअर इन्द्रजीतसिंह के साथ किसी तरह की बुराई नहीं की, बल्कि उनके साथ नेकी की और उन्हें एक बहुत बड़े दुश्मन के हाथ से छुड़ाया। जब वे तुम लोगों से मिलेंगे और हाल कहेंगे, तब मालूम होगा कि कमलिनी ने सच कहा था!

इसके बाद कमलिनी ने इन्द्रजीतसिंह का अपने लश्कर से गायब होना और उन्हें दुश्मन के हाथ से छुड़ाना, कई दिनों तक अपने मकान में रखना, माधवी को गिरफ्तार करना, किशोरी का रोहतासगढ़ के तहखाने से निकलना और धनपति के कब्जे में पड़ना, तारा के खबर पहुँचाने पर इन्द्रजीतसिंह को साथ लेकर किशोरी को छुड़ाने के लिए जाना, रास्ते में शेरसिंह और देवीसिंह से मिलना, अग्निदत्त का हाल और अन्त में उस तिलिस्मी मकान के अन्दर सभी लोगों का कूद जाना आदि कमला से पूरा-पूरा बयान किया। कमला ताज्जुब से सब बातें सुनती रही और अब कमलिनी पर उसे पूरा पूरा विश्वास हो गया।

कमला फिर किशोरी और कुँअर इन्द्रजीतसिंह उस खँडहर वाले तहखाने में क्योंकर पहुँचे?

कमलिनी––वह खँडहर एक छोटे से तिलिस्म से सम्बन्ध रखता है। एक औरत जो मायारानी के नाम से पुकारी जाती है और जिसका हाल कुछ दिन बाद तुम लोगों को मालूम होगा, उस तिलिस्म पर राज्य करती है। मैं उसकी सगी बहिन हैं। हमारी तिलिस्मी किताब से साबित होता है कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह और आनन्दसिंह उस तिलिस्म को तोड़ेंगे क्योंकि तिलिस्म तोड़ने वालों के जो-जो लक्षण उस किताब में लिखे वे सब इन दोनों भाइयों में पाये जाते हैं, परन्तु मायारानी चाहती है कि तिलिस्म टने न पावे और इसीलिए वह दोनों कुमारों को अपनी कैद में रखने अथवा मार डालने का उद्योग कर रही है। मैंने उसे बहुत-कुछ समझाया और कहा कि तिलिस्म बनाने वालों के खिलाफ चलने और इन दोनों भाइयों से दुश्मनी रखने का नतीजा अच्छा न होगा परन्तु उसने न माना बल्कि वह मेरी भी दुश्मन बन बैठी। अन्त में लाचार मुझे उसका साथ छोड़ देना पड़ा। मैंने उस तालाब वाले मकान पर अपना कब्जा कर लिया और उसी में रहने लगी। उस मकान में मैं बेफिक्र रहती हूँ। मायारानी के कई आदमियों