पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१०७

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और उसमें यह लिखा था––

"आप चिट्ठी देखते ही केवल एक ऐयार को लेकर इस आदमी के साथ बेखौफ चले आइए। कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह और किशोरी वगैरह इसी जगह कैद हैं। उनको छुड़ाने का पूरा-पूरा उद्योग में कर चुकी हूँ, केवल आपके आने की देर है। यदि आप तीन दिन के अन्दर यहाँ न पहुँचेंगे तो इन लोगों में से एक की भी जान न बचेगी।"

कमलिनी––अच्छा फिर क्या हुआ?

कमला––जब मैंने दस्तखत करने से इनकार किया तो मनोरमा बहुत बिगड़ी और बोली कि "यदि तू हस्ताक्षर न करेगी, तो तेरे सामने ही कुँअर आनन्दसिंह और तारासिंह का सिर काट लिया जायगा और उसके बाद तुझे भी सूली दे दी जायगी।" यह सुनकर मैं घबरा गई और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए। इतने में ही। तारासिंह ने मुझे पुकारकर कहा, "कमला, उस चिट्ठी में जो कुछ लिखा है मैं अन्दाज से कुछ-कुछ समझ गया। खबरदार, इन लोगों की धमकी में न आना, और चाहे जो हो, उस चिट्ठी पर दस्तखत भी न करना।" तारासिंह की बात सुनकर मायारानी की तो केवल भौंहें ही चढ़कर रह गयीं, परन्तु मनोरमा बहुत ही उछली-कूदी और बकझक करने लगी। उसने मायारानी की तरफ देखकर कहा, "कम्बख्त तारासिंह को अवश्य सूली देनी चाहिए उसने अब यहाँ का रास्ता भी देख लिया है इसलिए उसका मारना आवश्यक हो गया है, और इस नालायक कमला को सरकार मेरे हवाले करें, मैं इसे अपने घर ले जाऊँगी।" मायारानी ने इशारे से मनोरमा की बात मंजूर की। मनोरमा ने एक चोबदार औरत की तरफ देखकर कहा, "कमला को ले जाकर कैद में रखो। चार-पाँच दिन बाद काशीजी में हमारे घर पर भिजवा देना, क्योंकि इस समय मुझे एक जरूरी काम के लिए जाना है जहाँ से तीन-चार दिन के अन्दर शायद न लौट सकूँगी।" हुक्म के साथ ही मुझ पर पुनः चादर डाल दी गई जिसकी तेज महक ने मुझको बेहोश कर दिया और फिर जब मैं होश में आई, तो अपने को एक अँधेरी कोठरी में कैद पाया। कई दिन तक मैं उसी कोठरी में कैद रही और इस बीच में जो कुछ रंज और तकलीफ उठानी पडी, उसका कहना व्यर्थ है। आखिर एक दिन भोजन में मुझे बेहोशी की दवा दी गई और बेहोश होने के बाद जब मैं होश में आई तो अपने को आपके कब्जे में पाया। अब न मालूम कुँअर इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, किशोरी और उनके ऐयार लोगों पर क्या मुसीबत आई और वे लोग किस अवस्था में पड़े हुए हैं!

यहाँ तक कहकर कमला चुप हो गई मगर उसकी आँखों से आँसू की बूँदें बराबर जारी थीं। कमलिनी भी बड़े गौर और अफसोस के साथ उसकी बातें सुनती जाती थी और जब वह चुप हो गई तो बोली––

कमलिनी––कमला, सब्र कर, घबरा मत। देख, मैं उन लोगों को कैसा छकाती हूँ। उन लोगों की क्या मजाल जो मेरे हाथ से बचकर निकल जायें। तिलिस्मी मकान के अन्दर जब कुँअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह हँसते-हँसते कूद गये थे तो उन लोगों के पहले मैंने अपने कई आदमी उस मकान के अन्दर कुदाये थे जिसका हाल थोड़ी देर पहले मैं