तुझके कह चुकी हूँ। मैंने उन आदमियों को बेसबब दुश्मनों के हाथ में नहीं फँसाया, कुछ समझ-बूझ के ही ऐसा किया था। वे लोग साधारण मनुष्य न थे, आशा है कि थोड़े दिन में तू सुन लेगी कि उन लोगों ने क्या-क्या कार्रवाई की।
कमला––आज आपके मिलने से और बहुत-सी बातें सुनकर मेरा जी ठिकाने हुआ। आप सरीखा मददगार के पाकर मैं भी अपने जी का हौसला निकालना चाहती हूँ और...
कमलिनी––नहीं-नहीं, इस समय तू और कुछ मत सोच और सीधे रोहतासगढ़ चली जा। तेरे वहाँ जाने से दो काम निकलेंगे, एक तो तेरी जुबानी सब हाल सुनकर राजा वीरेन्द्रसिंह को बहुत-कुछ ढाढ़स होगी, दूसरे, तू इस बात से भी होशियार रहना और सबको भी होशियार कर देना कि वह तिलिस्मी दारोगा अर्थात् बूढ़ा साधु कहीं घोखा देकर निकल न जाय। इसमें कोई शक नहीं कि मायारानी ने उसे छुड़ाने के लिए कई आदमी रोहतासगढ़ भेजे होंगे।
कमला––बहुत अच्छा! मैं रोहतासगढ़ जाती हूँ और उस बुड्ढे कम्बख्त से होशियार रहूँगी। मगर एक भेद बहुत दिनों से मेरे दिल में खटक रहा है, यदि आप चाहें तो मेरे दिल से वह खुटका निकाल सकती हैं।
कमलिनी––वह क्या है?
कमला––(भूतनाथ की तरफ इशारा करके) यह कौन हैं? इनका असल भेद मुझको बता दीजिये।
कमलिनी––(हँसकर) इसमें सन्देह नहीं कि भूतनाथ के बारे में तरह-तरह की बातें तू सोचती होगी, परन्तु लाचार है कि इस समय इनका असल भेद तुझसे नहीं कह सकती। थोड़े ही दिनों में इनका हाल तुझे ही नहीं, सभी को मालूम हो जायगा। हाँ, इतना अवश्य कहूँगी कि तुझे अपने चाचा शेरसिंह की तरह इनसे डरने की कोई जरूरत नहीं। ये तुझे किसी तरह की तकलीफ न देंगे, बल्कि जहाँ तक हो सकेगा, तेरी मदद करेंगे।
कमलिनी से अपने सवाल का पूरा-पूरा जवाब न पाकर कमला चुप हो रही और कमलिनी की आज्ञानुसार उसको उसी समय रोहतासगढ़ चले जाना पड़ा।
6
दूसरे दिन कुछ रात बीते कमलिनी फिर मनोरमा के मकान पर पहुँची। बाग के फाटक पर उसी दरबान को टहलते पाया जिससे कल बातचीत कर चुकी थी। इस समय बाग का फाटक खुला हुआ था और उस दरबान के अतिरिक्त और भी कई सिपाही वहाँ मौजद थे। दरबान कमलिनी को देखते ही खुशी से आगे बढ़ा और बोला, "आइये आइये, मैं कब से आपकी राह देख रहा हूँ। नागरजी को आये दो घण्टे से ज्यादा हो गये और वे आपसे मिलने के लिए बेताब हो रही हैं।"