पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/११०

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हाल देख रही थी।

नागर––अफसोस, मनोरमा ने बहुत ही बुरा किया! आजकल भूतनाथ से बहुत कुछ काम निकलने का जमाना था। खैर, तब क्या हुआ?

कमलिनी––मनोरमा को मालूम न था कि राजा वीरेन्द्रसिंह का ऐयार तेजसिंह इस समय थोड़ी ही दूर पर एक पेड़ की आड़ में खड़ा भूतनाथ और मनोरमा की तरफ देख रहा है।

नागर––ओफ, तेजसिंह को भूतनाथ के मरने का सख्त रंज हुआ होगा, क्योंकि इन दिनों भूतनाथ दिलोजान से उन लोगों की मदद कर रहा था, अच्छा तब?

कमलिनी––तेजसिंह बड़ी फुर्ती से उस जगह जा पहुँचा जहाँ मनोरमा खड़ी थी और एक लात मनोरमा की छाती पर ऐसी लगाई कि वह बदहवास हो जमीन पर गिर पड़ी। तेजसिंह ने उसकी मुश्कें बाँध लीं और जफील बजाई, जिसकी आवाज सुन कई आदमी वहाँ आ पहुँचे। उन लोगों ने मनोरमा के साथ मुझे भी गिरफ्तार कर लिया। उसी समय मनोरमा के कई सवार दूर से आते हुए दिखाई पड़े, मगर उन लोगों के पहुँचने के पहले ही तेजसिंह और उसके साथी हम दोनों को लेकर वहाँ से थोड़ी दूर पर पेड़ों की आड़ में जा छिपे। दूसरे दिन हम दोनों ने अपने को रोहतासगढ़ किले के अन्दर पाया। मनोरमा ने अपने छूटने की बहुत-कुछ कोशिश की, मगर कोई काम न चला। आखिर उसने तेजसिंह से कहा कि "भूतनाथ बड़ा ही शैतान, नालायक और खूनी आदमी था; उसका असल हाल आप लोग नहीं जानते, यदि जानते तो आप लोग खुद भूतनाथ का सिर काट डालते।" इसके जवाब में तेजसिंह ने कहा कि "यदि इस बात को तू साबित कर दे तो मैं तुझे छोड़ दूँगा।" मनोरमा ने मेरी तरफ इशारा करके कहा कि "यदि आप इसे छोड़ दें और पाँच दिन की मोहलत दें तो इसे मैं अपने घर भेजकर भूतनाथ के लिखे थोड़े कागजात ऐसे मँगा दूँ कि जिन्हें पढ़ते ही आपको मेरी बातों पर विश्वास हो जाय और भूतनाथ का वह विचित्र हाल भी, जिसे आप लोग नहीं जानते, मालूम हो। यदि मैं झूठी निकलूं तो जो कुछ चाहें, मुझे सजा दीजियेगा।" तेजसिंह ने कुछ देर सोच-विचार कर कहा कि "हो सकता है मुझसे बहाना करके इसे घर भेजो और किसी तरह की मदद मँगाओ, मगर मुझे इसकी कुछ परवाह नहीं, मैं तुम्हारी बात मंजूर करता हूँ और इसे (मेरी तरफ इशारा करके) छोड़ देता हूँ, जो कुछ चाहो, इसे समझा-बुझाकर अपने घर भेजो।" इसके बाद मुझसे निराले में बातचीत करने के लिए आज्ञा माँगी गई और तेजसिंह ने उसे भी मंजूर किया। आखिर मनोरमा ने मुझे बहुत-कुछ समझा-बुझाकर तुम्हारे पास रवाना किया। अब मैं तो रोहतासगढ़ जाने वाली नहीं, क्योंकि बड़ी मुश्किल से जान बची है, मगर तुम्हें मुनासिब है कि जहाँ तक हो सके, भूतनाथ के कागजात लेकर जल्द रोहतासगढ़ जाओ और अपनी सखी के छुड़ाने का बन्दोवस्त करो।

कमलिनी की बातें सुनकर नागर सोच-सागर में डूब गयी। न मालूम उसके दिल में क्या-क्या बातें पैदा हो रही थीं, मगर लगभग आधी घड़ी के वह चुपचाप बैठी रही। इसके बाद उसने सिर उठाया और कमलिनी की तरफ देखकर कहा, "खैर, अब