पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/११७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
117
 

कमलिनी––दो घण्टे तो मैं बड़े आराम से सोई पर यकायक घड़घड़ाहट की आवाज सुन चौंक पड़ी और घबरा कर चारों तरफ देखने लगी।

नागर––घड़घड़ाहट की आवाज कैसी?

कमलिनी––मालूम होता था कि इस कमरे के नीचे कई गाड़ियाँ दौड़ रही हैं। पहले तो मुझे शक हुआ कि शायद भूकम्प आने वाला है क्योंकि उसके पहले भी प्रायः ऐसी घटना हुआ करती है, मगर सो न हुआ। आखिर थोड़ी देर तक राह देख कर फिर सो रही। आधा घण्टा भी न हुआ होगा कि मेरी चारपाई हिली, मैं घबरा कर उठ बैठी और अपने सामने एक कम-उम्र लड़के को देख कर ताज्जुब करने लगी।

नागर––(ताज्जुब से) कम-ऊम्र लड़का! या कोई औरत थी? शायद तुमने अच्छी तरह खयाल न किया हो।

कमलिनी––जी नहीं, जहाँ तक मैं समझती हूँ, वह लड़का ही था!

नागर––भला उसकी उम्र क्या होगी? और सूरत-शक्ल कैसी थी?

कमलिनी––शायद चौदह या पन्द्रह वर्ष होगी, चेहरा खूबसूरत और रंग गोरा, सिर पर मुँडासा बाँधे और हाथ में एक बड़ा-सा डिब्बा लिए था।

नागर––(कुछ सोच कर) तुमने धोखा खाया, वह जरूर कोई औरत बल्कि कमलिनी...अच्छा, तब क्या हुआ?

कमलिनी––उसने आते ही मुझसे पूछा कि 'सच बता, किशोरी कहाँ है?'

नागर––आते ही किशोरी को पूछा?

कमलिनी––जी हाँ। मैंने जवाब दिया कि 'मुझे खबर नहीं।' इतना सुनते ही उसकी आँखें लाल हो गई और गुस्से के मारे थरथर काँपने लगा। उसने वह बड़ा डिब्बा जो हाथ में लिए था जमीन पर दे मारा। उस डिब्बे में से इतनी तेज चमक पैदा हुई कि जिसे मैं अच्छी तरह बयान नहीं कर सकती। मालूम होता था कि आसमान से उतर कर कई बिजलियाँ एक साथ कमरे के अन्दर आ घुसी हैं। मेरी आँखें एकदम बन्द हो गई और मैं काँप कर चारपाई पर गिर पड़ी। थोड़ी देर बाद मालूम हुआ कि कोई आदमी मेरे बदन पर हाथ फेर रहा है। बस, उस समय मैं बेहोश हो गई और तन-बदन की सध जाती रही। मैं समझती हूँ कि कोई पहर भर के बाद मुझे होश आई और तब से बराबर जाग रही हूँ। मैंने बहुत चाहा कि कमरे से निकल भागूँ मगर डर के मारे हाथ-पैर ऐसे कमजोर हो गए थे कि चारपाई से उठ न सकी, इस समय जब तुम्हारी सूरत देखी तो जरा जी ठिकाने हुआ।

नागर––(कुछ देर सोचने के बाद धीरे से) बेशक यह काम मँझली रानी का है, दूसरे का नहीं।

कमलिमी––मँझली रानी कौन?

नागर––तुम उसे नहीं जानती हो।

कमलिनी––खैर, जो हो, मैं तो सोचे हुए थी कि कल या परसों जब मैं अपना काम करके लौटँगी और एक रात इस शहर में काटने की नौबत आवेगी तो बस इसी मकान में रह जाऊँगी, क्योंकि मनोरमा की मोहब्बत के भरोसे इसे भी अपना घर