पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/११६

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बिल्कुल बन्द हो गई जो किशोरी को मारना चाहता था, इसके साथ ही कमलिनी ने भारी स्वर में यह आवाज दी, "खबरदार! किशोरी की जान लेकर अपनी जान का ग्राहक मत बन!"

उस बिजली की चमक ने तो नौजवान को परेशान कर ही दिया था, मगर साथ ही कमलिनी की आवाज ने जो गैव की आवाज मालूम होती थी उसे बदहवास कर दिया और वह इतना डरा और घबराया कि बिना कुछ सोचे और किशोरी को दु:ख दिये उस कोठरी से निकल भागा। कमलिनी ने भी अब उस जगह ठहरना मुनासिब न जाना। जहाँ तक जल्द हो सका अपने कमरे में चली आई। उस तख्ते के दरवाजे को जिसे खोल दूसरी कोठरी में गई थी ज्यों-का-त्यों बन्द करने के बाद अपने कमरे का दरवाजा भी खोल दिया जो दूसरी कोठरी में जाने के पहले भीतर से बन्द कर लिया था।

इस समय रात बहुत थोड़ी रह गई थी। कमलिनी ने चाहा कि दो घण्टे आराम करे मगर जो कुछ अद्भुत बातें उसने देखी और सूनी थीं, उनके खयाल और विचार न आराम लेने न दिया और उसे किसी तरह नींद न आई। अभी आसमान पर सुबह का सफेदी अच्छी तरह फैलने भी नहीं पाई थी कि दरवाजा खुलने की उसे आहट मालूम हुई। कमलिनी ने दरवाजे की तरफ देखा तो नागर पर नजर पड़ी।

कमलिनी पहले ही से सोचे हुए थी कि आज की अद्भुत बातों का असर कुछ न कुछ नागर पर जरूर पड़ेगा और वह सवेरा होने से पहले ही यहाँ पहुँचेगी बल्कि ताज्जुब नहीं कि वह मुझ पर किसी तरह का शक भी करे। आखिर कमलिनी का सोचना ठीक निकला।

इस समय नागर के चेहरे पर परेशानी और उदासी छाई हुई थी। उसने आते ही कमलिनी पर एक तेज निगाह डाली और सवाल करना शुरू किया––

नागर––इस समय तुम्हारी आँखें लाल मालूम होती हैं, क्या नींद नहीं आई?

कमलिनी––हाँ दो घण्टे के लगभग तो मैं सोई मगर फिर नींद नहीं आई, अभी तक डर के मारे मेरा कलेजा काँप रहा है। यह उम्मीद न थी कि तुम मुझे एसी भयानक जगद सोने के लिए दोगी क्योंकि मैंने तुम्हारे साथ किसी तरह की बुराई नहीं की था।

नागर––(ताज्जुब से) सो क्या? तुम्हें किस बात की तकलीफ हुई और यहाँ पर क्या भयानक वस्तु देखने में आई?

कमलिनी––मैं यहाँ पर अब एक सायत भी नहीं ठहर सकती, केवल तुम्हारा राह देख रही थी।

नागर––आखिर मामला क्या है, कुछ कहो भी तो।

कमलिनी––अच्छा, बाहर चलो तो जो कुछ देखा है तुमसे कहूँ।

इसमें कोई शक नहीं कि नागर बहुत तेजी के साथ आई थी और उसे कमलिनी पर शक था मगर कमलिनी ने ऐसे ढंग से बातें कीं कि उसकी हालत बिल्कुल ही बदल गई और वह तरह-तरह के सोच में पड़ गई। नागर और कमलिनी बाहर आई और सहन में एक संगमरमर की चौकी पर बैठकर बातचीत करने लगी।

नागर––हाँ कहो, तुमने क्या देखा?

च॰ स॰-2-2