पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१२१

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समय नागर जा रही है, क्योंकि इधर से कई कोस का बचाव पड़ता था।

यकायक नागर का घोड़ा भड़का और रुक कर अपने दोनों कान आगे की तरफ करके देखने लगा। नागर शहसवारी का फन बखूबी जानती और अच्छी तरह समझती थी, इसलिए घोड़े के भड़कने और रुकने से उसे किसी तरह का रंज न हुआ बल्कि वह चौकन्नी हो गई और बड़े गौर-से चारों तरफ देखने लगी। अचानक सामने की तरफ पगडंडी के बीचोंबीच में बैठे हुए एक शेर पर उसकी निगाह पड़ी जिसका पिछला भाग नागर की तरफ था अर्थात् मुँह उस तरफ जिधर नागर जा रही थी। नागर बड़े गौर से शेर को देखने और सोचने लगी कि अब क्या करना चाहिए। अभी उसने कोई राय पक्की नहीं की थी कि दाहिनी बगल की झाड़ी में से एक आदमी निकल कर बढ़ा और फुर्ती के साथ धोड़े के पास आ पहँचा, जिसे देखते ही वह चौंक पड़ी और घबराहट के मारे बोल उठी, "ओफ, मुझे बड़ा भारी धोखा दिया गया!" साथ ही इसके वह अपना हाथ पथरकले पर ले गई, मगर उस आदमी ने इसे कुछ भी करने न दिया। उसने नागर का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और एक झटका ऐसा दिया कि वह घोड़े के नीचे आ रही। वह आदमी तुरन्त उसकी छाती पर सवार हो गया और उसके दोनों हाथ कब्जे में कर लिए।

यद्यपि नागर को विश्वास हो गया कि अब उसकी जान किसी तरह नहीं बच सकती तो भी उसने बड़ी दिलेरी से अपने दुश्मन की तरफ देखा और कहा––

नागर––बेशक, उस हरामजादी ने मुझे पूरा धोखा दिया, मगर भूतनाथ, तुम मुझे मार कर जरूर पछताओगे। वह कागज जिसके मिलने की उम्मीद में तुम मुझे मार रहे हो, तुम्हारे हाथ कभी न लगेगा क्योंकि मैं उसे अपने साथ नहीं लाई हूँ। यदि तुम्हें विश्वास न हो तो मेरी तलाशी ले लो, और बिना वह कागज पाए मेरे या मनोरमा के साथ बुराई करना तुम्हारे हक में ठीक नहीं है इसे तुम अच्छी तरह जानते हो।

भूतनाथ––अब मैं तुझे किसी तरह नहीं छोड़ सकता। मुझे विश्वास है कि वे कागजात, जिनके सबब से मैं तुझ ऐसी कमीनों की ताबेदारी करने पर मजबूर हो रहा हैं, इस समय जरूर तेरे पास हैं तथा इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि कमलिनी ने अपना वादा पूरा किया और कागजों के सहित तुझे मेरे हाथ फँसाया। अब तू मुझे धोखा नहीं दे सकती और न तलाशी लेने की नीयत से मैं तुझे कब्जे से छोड़ ही सकता हूँ। तेरा जमीन से उठना मेरे लिए काल हो जायगा क्योंकि फिर तू हाथ नहीं आवेगी।

नागर––(चौंककर और ताज्जुब से) हैं, तो क्या वह कम्बख्त कमलिनी थी, जिसने मुझे धोखा दिया! अफसोस, शिकार घर में आकर निकल गया। खैर, जो तेरे जी में आवे कर, यदि मेरे मारने में ही तेरी भलाई हो तो मार, मगर मेरी एक बात सुन ले।

भूतनाथ––अच्छा कह, क्या कहती है? थोड़ी देर तक ठहर जाने में मेरा कोई हर्ज भी नहीं।

नागर––इसमें तो कोई शक नहीं कि अपने कागजात, जिन्हें तेरा जीवन-चरित्र कहना चाहिए, उन्हें लेने के लिए ही तू मुझे मारना चाहता है।