बड़ा ही गजब हो गया, मैं तो अपना नाम भी भूल गया! अभी तक तो याद था कि मेरा नाम बिहारीसिंह है मगर अब भूल गया, तुम्हारे सिर की कसम जो कुछ भी याद हो। भाई यार दोस्त मेरे, जरा बता तो दो, मेरा नाम क्या है?
हरनामसिंह––अफसोस, रानी मुझी को दोष देंगी, कहेंगी कि हरनामसिंह अपने साथी की हिफाजत न कर सका।
बिहारीसिंह––ही ही ही ही, वाह रे भाई हरनामसिंह, अलिफ बे ते टे से च छ ज झ, उल्लू की दुम फाख्ता...!
हरनामसिंह को विश्वास हो गया कि जरूर किसी ऐयार की शैतानी से जिसने कुछ खिला या पिला दिया है, हमारा साथी बिहारीसिंह पागल हो गया, इसमें कोई सन्देह नहीं। उसने सोचा कि अब इससे कुछ कहना-सुनना उचित नहीं, इसे इस समय किसी तरह फुसला कर घर ले चलना चाहिए।
हरनामसिंह––अच्छा यार, अब देर हो गई, चलो घर चलें।
बिहारीसिंह––क्या हम औरत हैं कि घर चलें! चलो जंगल में चलें। शेर का शिकार खेलें, रंडी का नाच देखें, तुम्हारा गाना सुनें और सबके अन्त में तुम्हारे सिरहाने बैठकर रोएँ। ही ही ही ही...!
हरनामसिंह––खैर, जंगल ही में चलो।
बिहारीसिंह––हम क्या साधु वैरागी या उदासी हैं कि जंगल में जायें! बस, इसी जगह रहेंगे, भंग पीएँगे, चैन करेंगे, यह भी जंगल ही है। तुम्हारे जैसे गदहों का शिकार करेंगे, गदहे भी कैसे कि बस पूरे अन्धे! (इधर-उधर देखकर) सात-पाँच बारह पाँच तीन, तीन घण्टे बीत गये अभी तक भंग लेकर नहीं आया, पूरा झूठा निकला मगर मुझसे बढ़ के नहीं! बदमाश है, लुच्चा है, अब उसकी राह या सड़क नहीं देखूगा! चलो भाईसाहब चलें, घर ही की तरफ मुँह करना उत्तम है, मगर मेरा हाथ पकड़ लो, मुझे कुछ सूझता नहीं।
हरनामसिंह ने गनीमत समझ और बिहारीसिंह का हाथ पकड़ घर की तरफ अर्थात् मायारानी के महल की तरफ ले चला। मगर वाह रे तेजसिंह, पागल वन के क्या काम निकाला है! अब ये चाहे दो सौ दफे चूकें मगर किसी की मजाल नहीं कि शक करे। बिहारीसिंह को मायारानी बहुत चाहती थी क्योंकि इसकी ऐयारी खूब चढ़ी-बढ़ी थी, इसलिए हरनामसिंह उसे ऐसी अवस्था में छोड़ कर अकेला जा भी नहीं सकता था। मजा तो उस समय होगा जब नकली बिहारीसिंह मायारानी के सामने होंगे और भूत की सूरत बने असली बिहारीसिंह भी पहुँचेंगे।
बिहारीसिंह को साथ लिए हरनामसिंह जमानिया[१] की तरफ रवाना हुआ। मायारानी वास्तव में जमानिया की रानी थी, इसके बाप-दादे भी इस जगह हुकूमत कर गए थे। जमानिया के सामने गंगा के किनारे से कुछ दूर हट कर एक बहुत ही खुश-
- ↑ जमानिया––इसे लोग जमानिया भी कहते हैं। काशी के पूरब गंगा के दाहिने किनारे पर आबाद है।