पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१२९

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नुमा और लम्बा-चौड़ा बाग था जिसे वहाँ वाले 'खास बाग' के नाम से पुकारते थे। इस बाग में राजा अथवा राज्य कर्मचारियों के सिवाय कोई दूसरा आदमी जाने नहीं पाता था। इस बाग के बारे में तरह-तरह की गप्पें लोग उड़ाया करते थे, मगर असल भेद यहाँ का किसी को भी मालूम न था। इस बाग के गुप्त भेदों को शाहीखानदान और दीवान तथा ऐयारों के सिवाय कोई गैर आदमी नहीं जानता था और न कोई जानने की कोशिश कर सकता था, यदि कोई गैर आदमी इस बाग में पाया जाता तो तुरन्त मार डाला जाता था, और यह कायदा बहत पुराने जमाने से चला आता था।

जमानिया में जिस छोटे किले के अन्दर मायारानी रहती थी उसमें से गंगा के नीचे-नीचे एक सुरंग भी इस बाग तक गई थी और इसी राह से मायारानी वहाँ आती जाती थी, इस सबब से मायारानी का इस बाग में आना या यहाँ से जाना खास-खास आदमियों के सिवाय,किसी गैर को न मालूम होता था। किले और इस बाग का खुलासा हाल पाठकों को स्वयं मालूम हो जायेगा इस जगह विशेष लिखने की कोई आवश्यकता नहीं। हाँ, इस जगह इतना लिख देना मुनासिब मालूम होता है कि रामभोली के आशिक नानक तथा कमला ने इसी बाग में मायारानी का दरबार देखा था।

जमानिया पहुँचने तक बिहारीसिंह ने अपने पागलपन से हरनामसिंह को बहुत ही तंग किया और साबित कर दिया कि पढ़ा-लिखा आदमी किस ढंग का पागल होता है। यदि मायारानी का डर न होता तो हरनामसिंह अपने साथी को बेशक छोड़ देता और हजार खराबी के साथ घर ले जाने की तकलीफ न उठाता।

कई दिन के बाद बिहारीसिंह को साथ लिए हुए हरनामसिंह जमानिया के किले में पहुँच गया। उस समय पहर भर रात जा चुकी थी। किले के अन्दर पहुँचने पर मालूम हुआ कि इस समय मायारानी बाग में है, लाचार बिहारीसिंह को साथ लिए हुए हरनामसिंह को उस बाग में जाना पड़ा और इसलिए बिहारीसिंह (तेजसिंह) ने किले और सुरंग का रास्ता भी बखूबी देख लिया। सुरंग के अन्दर दस-पन्द्रह कदम जाने के बाद बिहारीसिंह ने हरनामसिंह से कहा––

बिहारीसिंह––सुनो जी, इस सुरंग के अन्दर सैकड़ों दफे हम आ चुके और आज भी तुम्हारे मलाहिजे से चले आये, मगर आज के बाद फिर कभी यहाँ लाओगे तो मैं तुम्हें कच्चा ही खा जाऊँगा और इस सुरंग को भी बर्बाद कर दूँगा, अच्छा, यह बताओ कि मुझे कहाँ लिए जाते हो?

हरनामसिंह––मायारानी के पास।

बिहारीसिंह––तब तो मैं नहीं जाऊँगा क्योंकि मैं सुन चुका हूँ कि मायारानी आजकल आदमियों को खाया करती है, तुम भी तो कल तक तीन गदहियाँ खा चुके हो! मायारानी के सामने चलो तो सही, देखो मैं तुम्हें कैसे छकाता हूँ, ही ही ही, बच्चा तुम्हें छकाने से क्या होगा, मायारानी को छकाऊँ तो कुछ मजा मिले! भज मन राम चरन सुखदाई! (भजन गाता है)।

बड़ी मुश्किल से सुरंग खतम की और बाग में पहुँचे। उस सुरंग का दूसरा सिरा बाग में एक कोठरी के अन्दर निकलता था। जिस समय वे दोनों कोठरी के बाहर