मायारानी––कौन-सी चीज ऐसी है जो तुम्हारी देखी नहीं है?
बिहारीसिंह––देखी है मगर अच्छी तरह देखूँगा।
मायारानी––क्या देखोगे?
बिहारीसिंह––समझिए!
मायारानी––कुछ कहो भी कि समझिये-समझिये ही बकते जाओगे।
बिहारीसिंह––अच्छा एक हर्फ कहो तो कह दूँ।
मायारानी––खैर, यही सही।
बिहारीसिंह––कै कै कै कै!
मायारानी––(मुस्कुरा कर) कैदियों को देखोगे?
बिहारीसिंह––हाँ हाँ हाँ, बस बस बस, वही वही वही।
मायारानी––उन्हें तो तुम देख ही चुके हो, तुम्हीं लोगों ने तो उन्हें गिरफ्तार किया है।
बिहारीसिंह––फिर देखेंगे, सलाम करेंगे, नाच नचावेंगे, ताक धिनाधिन नाचो भालू (उठ कर कूदता है)
मायारानी बिहारीसिंह को बहुत मानती थी। मायारानी के कुछ ऐयारों का वह सरदार था और वास्तव में बहुत ही तेज और ऐयारी के फन में पूरा उस्ताद भी था। यद्यपि इस समय वह पागल है तथापि मायारानी को उसकी खातिर मंजूर है। मायारानी हँस कर उठ खड़ी हुई और बिहारीसिंह को साथ लिए हुए उस कोठरी में चली गई जिसमें सुरंग का रास्ता था। दरवाजा खोल कर सुरंग के अन्दर गई। सुरंग में कई शीशे की हाँडियाँ लटक रही थीं और रोशनी बखूबी हो रही थी। मायारानी लगभग पचास कदम के जाकर रुकी, उस जगह दीवार में एक छोटी-सी आलमारी बनी जोर थी, उसके साथ तालियों का एक छोटा-सा गुच्छा लटक रहा था। मायारानी ने वह गुच्छा निकाला और उसमें की एक ताली लगा कर यह आलमारी खोली। आलमारी के अन्दर निगाह करने से सीढ़ियाँ नजर आईं जो नीचे उतर जाने के लिए थीं। वहाँ भी शीशे की कन्दील में रोशनी हो रही थी। बिहारीसिंह को साथ लिए हुए मायारानी नीचे उतरी। अब बिहारीसिंह ने अपने को ऐसी जगह पाया लहाँ लोहे के जंगले वाली कई कोठरियाँ थीं और हर एक कोठरी का दरवाजा मजबूत ताले से बन्द था। उन कोठरियों में हथकड़ी-बेड़ी से बेबस उदास और दुःखी केवल चटाई पर लेटे अथवा बैठे हुए कई कैदियों की सूरत दिखाई दे रही थी। ये कोठरियाँ गोलाकार ऐसे ढंग से बनी हुई थीं कि हर एक कोठरी में अलग अलग कैद करने पर भी कैदी लोग आपस में बातें कर सकते थे।
सबसे पहले बिहारीसिंह की निगाह जिस कैदी पर पड़ी वह तारासिंह था जिसे देखते ही बिहारी सिंह खिलखिला कर हँसा और चारों तरफ देख न मालूम क्या-क्या बक गया जिसे मायारानी कुछ भी न समझ सकी, इसके बाद बिहारीसिंह ने मायारानी की तरफ देखा और कहा––
"छिः छिः, मुझे आप इन कम्बख्तों के सामने क्यों लाईं? मैं इन लोगों की सूरत
च॰ स॰-2-8