पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१३७

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मायारानी––जो मुनासिब हो करो, मगर मुझे यह आश्चर्य जरूर मालूम होता है कि वह ऐयार जब तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव कर ही चुका और तुम्हें पागल बनाकर छोड़ ही चुका था तो बिना अपनी सूरत बदले यहाँ क्यों चला आया? ऐयारों से ऐसी भूल न होनी चाहिए, उसे मुनासिब था कि तुम्हारी या मेरे किसी और आदमी की सूरत बनाकर आता।

बिहारीसिंह––ठीक, मगर जो कुछ उसने किया वह भी उचित ही किया। मेरी या यहाँ के किसी और नौकर की सूरत बनाकर उसका यहाँ आना तब अच्छा होता जब मुझे गिरफ्तार रखता!

मायारानी––मैं यह भी सोचती हूँ कि तुम्हें गिरफ्तार करके केवल पागल ही बनाकर छोड़ देने में उसने क्या फायदा सोचा था? मेरी समझ में तो यह उसने भूल की।

इतना कहकर मायारानी ने टटोलने की नीयत से नकली बिहारीसिंह अर्थात् तेजसिंह पर एक तेज निगाह डाली। तेजसिंह भी समझ गये कि मायारानी को मेरी तरफ से कुछ शक हो गया है और इस शक को मिटाने के लिए वह किसी तरह की जाँच जरूर करेगी, तथापि इस समय बिहारीसिंह (तेजसिंह) ने ऐसा गम्भीर भाव धारण किया कि मायारानी का शक बढ़ने न पाया। थोड़ी देर तक इधर-उधर की बातें होती रहीं और इसके बाद लौंडी असली बिहारीसिंह को लेकर आ पहुँची। आज्ञानुसार असली बिहारीसिंह पर्दे के बाहर बैठाया गया। अभी तक उसकी आँखों पर पट्टी बँधी हुई थी।

असली बिहारीसिंह की आँखों से पट्टी खोली गई और उसने चारों तरफ अच्छी तरह निगाह दौड़ाने के बाद कहा, "बड़ी खुशी की बात है कि मैं जीता-जागता अपने घर में आ पहुँचा। (हाथ का इशारा करके) मैं इस बाग को और अपने साथियों को खुशी की निगाह से देखता हूँ। इस बात का अफसोस नहीं है कि मायारानी ने मुझसे पर्दा किया क्योंकि जब तक मैं अपना बिहारीसिंह होना साबित न कर दूँ, तब तक इन्हें मुझ पर भरोसा न करना चाहिए, मगर मुझे (हरनामसिंह की तरफ देखकर और इशारा करके) अपने इस अनूठे दोस्त हरनामसिंह पर अफसोस होता है कि इन्होंने मेरी कुछ भी परवाह न की और मुझे ढूँढने का भी कष्ट न उठाया। शायद इसका सबब यह हो कि वह ऐयार मेरी सुरत बनाकर इनके साथ हो लिया हो, जिसने मुझे धोखा दिया। अगर मेरी खयाल ठीक है तो वह ऐयार यहाँ जरूर आया होगा, मगर ताज्जुब की बात है कि मैं चारों तरफ निगाह दौड़ाने पर भी उसे नहीं देखता। खैर, यदि यहाँ आया तो देख ही लूँगा कि बिहारीसिंह वह है या मैं हूँ। केवल इस बाग के चौथे भाग के बारे में थोड़े सवाल करने से ही सारी कलई खुल जायगी।"

असली बिहारीसिंह की बातों ने, जो इस जगह पहुँचने के साथ ही उसने कहीं सभी पर अपना असर डाला। मायारानी के दिल पर तो उनका बहुत ही गहरा असर, पड़ा, मगर उसने बड़ी मुश्किल से अपने को सम्हाला और तब एक निगाह तेजसिंह के ऊपर डाली। तेजसिंह को यह क्या खबर थी कि यहाँ कोई ऐसा विचित्र बाग देखने में आवेगा और उसके भाग अथवा दों के बारे में सवाल किये जायेंगे। उन्होंने सोच लिया कि अब मामला बेढब हो गया, काम निकालना अथवा राजकुमारों को छुड़ाना तो दूर