के सामने हाजिर करे।
इस जगह इस बाग का कुछ थोड़ा-सा हाल लिख देना मुनासिब मालूम होता है। यह दो सौ बीघे का बाग मजबूत चहारदीवारी के अन्दर था। इसके चारों तरफ की दीवारें बहुत मोटी मज़बूत और लगभग पच्चीस हाथ के ऊँची थीं। दीवार के ऊपरी हिस्से में तेज नोक और धार वाले लोहे के काँटे और फाल इस ढंग से लगे हुए थे कि काबिल ऐयार भी दीवार लाँघकर बाग के अन्दर जाने का साहस नहीं कर सकते थे। कांटों के सबब यद्यपि कमन्द लगाने में सुभीता था। परन्तु उसके सहारे ऊपर चढ़ना बिलकुल ही असम्भव था। इस चहारदीवारी के अन्दर की जमीन जिसे हम बाग कहते हैं चार हिस्सों में बँटी हुई थी। पूरब की तरफ आलीशान फाटक था, जिसके अन्दर जाकर एक बाग जिसे पहला हिस्सा कहना चाहिए, मिलता था। इसकी चौड़ी-चौड़ी रविशें ईंट और चूने से बनी हुई थीं। पश्चिम तरफ अर्थात् इस हिस्से के अन्त में बीस हाथ मोटी और इससे ज्यादा ऊँची दीवार बाग की पूरी चौड़ाई तक बनी हई थी जिसके नीचे बहुत-सी कोठरियाँ थीं जो सिपाहियों के काम में आती थीं। उस दीवार के ऊपर चढ़ने के लिए खूबसुरत सीढ़ियाँ थीं जिन पर जाने से बाग का दूसरा हिस्सा दिखाई देता था और इन्हीं सीढ़ियों की राह दीवार के नीचे उतर कर उस हिस्से में आना पड़ता था, सिवा इसके और कोई दूसरा रास्ता उस बाग में जिसे हम दूसरा हिस्सा कहते हैं जाने के लिए नहीं था। बाग के इसी दूसरे हिस्से में वह इमारत या कोठी थी, जिसमें मायारानी दरबार किया करती थी या जिसमें पहुँचकर नानक ने मायारानी को देखा था। पहले हिस्से की अपक्षा यह हिस्सा विशेष खूबसूरत और सजा हुआ था। बाग के तीसरे हिस्से में जाने का रास्ता उसी मकान के अन्दर से था जिसमें मायारानी रहा करती थी। बाग के तीसरे हिस्से का हाल लिखवा जरा मुश्किल है तथापि इमारत के बारे में इतना कह सकते हैं कि इस तीसरे हिस्से के बीचोंबीच में एक बहुत ऊँचा बुर्ज था। उस बुर्ज के चारों तरफ कई मकान थे जिनके दालानों, कोठरियों, कमरों और बारहदरियों तथा तहखानों का हाल इस जगह लिखना कठिन है, क्योंकि उन सभी का तिलिस्मी बातों से विशेष सम्बन्ध है। हाँ, इतना कह सकते हैं कि उसी बूर्ज में से बाग के चौथे हिस्से में जाने का रास्ता था, मगर इस बाग के चौथे हिस्से में क्या-क्या है, उसका हाल लिखते कलेजा काँपता है। इस जगह हम उसका जिक्र करना मुनासिब नहीं समझते, आगे जाकर किसी मौके पर वह हाल लिखा जायगा।
जब वह लौंडी असली बिहारीसिंह को जो बाग के फाटक पर आया था, लेने चली गई तो नकली बिहारीसिंह अर्थात् तेजसिंह ने मायारानी से कहा, "इसे ईश्वर की कृपा ही कहनी चाहिए कि वह शैतान ऐयार, जिसने मेरे साथ जबर्दस्ती की और ऐसी दवा खिलाई कि जिसके असर से मैं पागल ही हो गया था, घर बैठे फँदे में आ गया।"
मायारानी––ठीक है, मगर देखना चाहिए, यहाँ पहुँचकर क्या रंग लाता है।
बिहारीसिंह––जिस समय वह यहाँ पहुँचे सबके पहले हथकड़ी और बेड़ी उसके नजर करनी चाहिए जिसमें मुझे देखकर भागने का उद्योग न करे।