वह जमीन का टुकड़ा जिस पर दोनों ऐयार बैठे थे यकायक नीचे की तरफ धँसने लगा और थोड़ी देर के बाद ही किसी दूसरी जमीन पर पहुँचकर ठहर गया। हरनामसिंह ने हाथ पकड़ कर तेजसिंह को उठाया और दस कदम आगे बढ़ा कर हाथ छोड़ दिया, इसके बाद फिर घड़घड़ाहाट की आवाज आई जिससे तेजसिंह ने समझ लिया कि वह जमीन का टुकड़ा जो नीचे उतर आया था फिर ऊपर की तरफ चढ़ गया। यहाँ तेजसिंह को सामने की तरफ कुछ उजाला मालूम हुआ। ये उसी तरफ बढ़े मगर अपने साथ हरनायसिंह के आने की आहट न पाकर उन्होंने हरनामसिंह को पुकारा पर कुछ जवाब न मिला। अब तेजसिंह को विश्वास हो गया कि हरनाम सिंह मुझे इस जगह कैद करके चलता बना, लाचार वे उसी तरफ रवाना हुए जिधर कुछ उजाला मालूम होता था। लगभग पचास कदम तक चलते जाने के बाद दरवाजा मिला और उसके पार होने पर तेजसिंह ने अपने को एक बाग में पाया।
यह बाग भी हरा-भरा था, और मालूम होता था कि इसकी रविशों पर अभी छिड़काव किया गया है भगर माली या किसी दूसरे आदमी का नाम भी न था। इस बाग में वनिस्बत फूलों के मेवों के पेड़ बहुत ज्यादा थे और एक छोटी-सी नहर भी जारी थी जिसका पानी मोती की तरह साफ था, सतह की कंकड़ियाँ भी साफ दिखाई देती थीं। बाग के बीचोंबीच में एक ऊँचा बुर्ज था और उसके चारों तरफ कई मकान, कमरे और दालान इत्यादि थे जैसा कि हम ऊपर लिख आये हैं। तेजसिंह सुस्त और उदास होकर नहर के किनारे बैठ गए और न मालूम क्या-क्या सोचने लगे। और चाहे जो कुछ भी हो मगर अब तेजसिंह इस योग्य न रहे कि अपने को बिहारीसिंह कहें। उनकी बची बचाई कलई भी हरनामसिह के साथ इस बाग में आने से खुल गई। क्या बिहारीसिंह तेजसिंह की तरह चुपचाप हरनामसिंह के साथ अनजान आदमियों की तरह चला आता? क्या मायारानी अथवा उसका कोई ऐयार अब तेजसिंह को बिहारीसिंह समझ सकता है? कभी नहीं, कभी नहीं! इन सब बातों को तेजसिंह भी बखूबी समझ सकते थे और उन्हें विश्वास हो गया कि अब हम कैद कर लिए गये।
थोडी देर बाद यहाँ के मकानों को घूम-घूमकर देखने के लिए तेजसिंह उठे, मगर सिवाय एक कमरे के जिसके दरवाजे पर मोटे अक्षर में दो (2) का अंक लिखा हुआ था बाकी सब कमरे और मकान बन्द पाये। दो का नम्बर देखते ही तेजसिंह को ध्यान आया कि मायारानी ने इसी कमरे में मुझे रखने का हुक्म दिया है। उस कमरे में एक दरवाजा और छोटी-छोटी कई खिड़कियाँ थीं, अन्दर फर्श बिछा हुआ और कई तकिये भी मौजूद थे। तेजसिंह को भूख लगी हुई थी, बाग में मेवों की कमी न थी, उन्हीं से पेट भरा और नहर का पानी पीकर उसी दो नम्बर वाले कमरे को अपना मकान या कैदखाना समझा।