पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१४०

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। तेजसिंह उसी दो नम्बर वाले कमरे के बाहर सहन में तकिया लगाये सो रहे हैं। चिराग बालने का कोई सामान यहाँ मौजूद नहीं जिससे रोशनी करते, पास में कोई आदमी नहीं जिससे दिल बहलाते। बाग से बाहर निकलने की उम्मीद नहीं कि कुमारों को छुड़ाने के लिए कोई बन्दोबस्त करते, लाचार तरह-तरह के तरदुदों में पड़े उन पेड़ों पर नजर दौड़ा रहे थे जो सहन के सामने बहुतायत से लगे हुए थे।

यकायक पेड़ों की आड़ में रोशनी मालूम पड़ी। तेजसिंह घबरा कर ताज्जुब के साथ उसी तरफ देखने लगे। थोड़ी ही देर में मालूम हुआ कि कोई आदमी हाथ में चिराग लिए तेजी के साथ कदम बढ़ाता उनकी तरफ आ रहा है। देखते-देखते वह आदमी तेजसिंह के पास आ पहुँचा और चिराग एक तरफ रखकर सामने खड़ा हो के बोला, "जय माया की!"

यह आदमी सिपाहियाना ठाठ में था। छोटी-छोटी स्याह दाढ़ी से इसके चेहरे का ज्यादा हिस्सा ढंका हुआ था दम्यांना कद और शरीर से हृष्ट-पुष्ट था। तेजसिंह ने भी यह समझ कर कि कोई ऐयार है जवाब में कहा, "जय माया की!"

सिपाही––(जो अभी आया है) उस्ताद, तुमने चालाकी तो खूब की थी मगर जल्दी करके काम बिगाड़ दिया।

तेजसिह––चालाकी क्या और जल्दी कैसी?

सिपाही––इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि मायारानी के बाग में रूप बदल कर आने वाला ऐयार पागल बने बिना किसी दूसरी रीति से काम चला ही नहीं सकता था परन्तु आपने जल्दी कर दी, दो-चार दिन और पागल बने रहते तो ठीक था, असली बिहारीसिंह की बातों का जवाब आपको न देना पड़ता और इस बाग के तीसरे या चौथे हिस्से का भेद भी आपसे न पूछा जाता, अब तो सभी को मालूम हो गया कि आप असली विहारीसिंह नहीं बल्कि कोई ऐयार हैं।

तेजसिंह––सब लोग जो चाहे समझें मगर तुम मेरे पास क्यों आये हो?

सिपाही––इसीलिए कि आपका हाल जानूँ और जहाँ तक हो सके आपकी मदद करे।

तेजसिंह––मैं अपना हाल सिवाय इसके और क्या कहूँ कि मैं वास्तव में बिहारीसिंह हूँ।

सिपाही––(हँस कर) क्या खूब, अभी तक आपका मिजाज ठिकाने नहीं हुआ! मगर मैं फिर कहता हूँ कि मुझ पर भरोसा कीजिये और अपना ठीक-ठीक नाम बताइए।

तेजसिंह––जब तुम यह समझते हो कि मैं ऐयार हूँ तो क्या यह नहीं जानते कि ऐयार लोग किसी ऐसे बतोलिए पर जैसे कि आप हैं यकायक कैसे भरोसा कर सकते हैं?

सिपाही––हाँ, आपका कहना ठीक है, ऐयारों को यकायक किसी का विश्वास न