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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१४१

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करना चाहिए, मगर मेरे पास एक ऐसी चीज है कि आपको झख मार कर मुझ पर भरोसा करना पड़ेगा।

तेजसिंह––(ताज्जुब से) वह ऐसी कौन-सी अनोखी चीज तुम्हारे पास है जिसमें इतना बड़ा असर है कि मुझे झख मार कर तुम पर भरोसा करना पड़ेगा?

सिपाही––नेमची रिक्तगन्थ![]

'नेमची रिक्तगन्थ' इस शब्द में न मालूम कैसा असर था कि सुनते ही तेजसिंह के रोंगटे खड़े हो गए, सिर नीचा कर लिया और न जाने क्या सोचने लगे। थोड़ी देर तक तो ऐसा मालूम होता था कि वह तेजसिंह नहीं हैं बल्कि पत्थर की कोई मूरत हैं। आखिर वे एक लम्बी साँस लेकर उठ खड़े हुए और सिपाही का हाथ पकड़ कर बोले "अब कहो तुम्हें मैं अपने साथियों में से कोई समझूँ या अपना पक्का दुश्मन जानूँ?"

सिपाही––दोनों में से कोई भी नहीं।

तेजसिंह––यह और भी ताज्जुब की बात है! (कुछ सोचकर) हाँ, ठीक है, यदि तुम चोर होते तो इतनी दिलावरी के साथ मुझसे बातें न करते, न मेरे सामने ही आते, लेकिन यह तो मालूम होना चाहिए कि तुम हो कौन? क्या रिक्तगन्थ तुम्हारे पास है?

सिपाही––जी नहीं, यदि वह मेरे पास होता तो अब तक राजा वीरेन्द्रसिंह के पास पहुँच गया होता।

तेजसिंह––फिर यह शब्द तुमने कहाँ से सुना?

सिपाही––यह वही शब्द है जिसे आप लोग समय पड़ने पर आपस में कहकर इस बात का परिचय देते हैं कि हम राजा वीरेन्द्रसिंह के दिली दोस्तों में से कोई हैं।

तेजसिंह––हाँ बेशक यह वही शब्द हैं, तो क्या तुम राजा वीरेन्द्रसिंह के दिली दोस्तों में से कोई हो।

सिपाही––नहीं, हाँ, होंगे।

तेजसिंह––(चिढ़कर) तुम अजब मसखरे हो जी, साफ-साफ क्यों नहीं कहते कि तुम कौन हो?

सिपाही––(हँस कर) क्या उस शब्द के कहने पर भी आप मुझ पर भरोसा न करेंगे?

तेजसिंह––(मुँह बनाकर और बात पर जोर देकर) हाय-हाय, कह तो दिया कि भरोसा किया भरोसा किया, भरोसा किया! झख मारा और भरोसा किया! अब भी कुछ कहोगे या नहीं? अपना नाम बताओगे या नहीं?

सिपाही––अच्छा तो आप ही पहले अपना परिचय दीजिये।

तेजसिंह––मैं तेजसिंह हूँ, बस हुआ? अब भी तुम अपना कुछ परिचय दोगे या नहीं?

सिपाही––हाँ हाँ, अब मैं अपना परिचय दूँगा, मगर पहले एक बात का जवाब


  1. नेमची रिक्तगन्थ––यह ऐयारी भाषा का शब्द है, इसका अर्थ है––खून से लिखी किताब का घर