पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१४६

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लौंडी––(ताज्जुब में आकर और चारों तरफ देख कर) यहाँ से तो कोई चीज चोरी नहीं गई।

यह जवाब सुन मैं चुपचाप नीचे उतर आया और घर में चारों तरफ घूम-घूम कर देखने लगा। जिस घर में खजाना रहता था, उसमें भी ताला बन्द पाया और कई कीमती चीजें जो मामूली तौर पर भण्डेरियों और खुली आलमारियों में पड़ी रहा करती थीं, ज्यों की त्यों मौजूद पाइं। लाचार मैं अपनी चारपाई पर जाकर लेट रहा और तरह-तरह की बातें सोचने लगा। उस समय रात बीत चुकी थी और सुबह की सफेदी घर में घुसकर कह रही थी कि अब थोड़ी ही देर में सूर्य भगवान निकलना चाहते हैं।

इस बात को कई महीने बीत गये। मैंने अपने दिल का हाल और वे बातें जो देखी-सुनी थीं, किसी से न कहीं। हाँ; छिपे-छिपे तहकीकात करता रहा कि असल मामला क्या है। चाल-चलन, बातचीत और मुहब्बत की तरफ ध्यान देने से मुझे निश्चय हो गया कि मेरी माँ जो घर में है, वह असल में मेरी माँ नहीं है। बल्कि कोई ऐयार है। मैं छिप-छिपे अपनी माँ की खोज करने लगा और इस विषय पर ध्यान देने लगा कि वह ऐयार घर में मेरी माँ बनकर क्यों रहती है और उसकी नीयत क्या है? इसके अलावे मैं अपनी जान की हिफाजत भी अच्छी तरह करने लगा। इस बीच में रामभोली ने मुझसे मुहब्बत ज्यादा बढ़ा दी। यद्यपि उसकी चाल-चलन में मुझे कुछ कर्क मालूम होता था। परन्तु मुहब्बत ने मुझे अन्धा बना रखा था और मैं उसका पूरा आशिक बन गया था।

एक पढ़ी-लिखी बुद्धिमान नौजवान औरत ने जिम्मा लिया हुआ था कि यद्यपि रामभोली गूंगी और बहरी है, परन्तु वह उसे इशारे ही में समझा-बुझाकर पढ़ना-लिखना सिखा देगी और वास्तव में उस औरत ने बड़ी चालाकी से रामभोली को पढ़ना-लिखना सिखा दिया। उसी औरत के हाथ रामभोली की लिखी चिट्ठी मेरे पास आती और मैं उसी के हाथ जवाब भेजा करता था। ऊपर कही वारदात के कुछ दिन बाद ही जो चिट्ठियाँ रामभोली की मेरे पास आने लगीं, उनके अक्षरों का रंग-ढंग और गढ़न कुछ निराले ही तौर की थी परन्तु मैंने उस समय उस पर कुछ विशेष ध्यान न दिया।

अब ऊपर वाले मामले को छह महीने से ज्यादा गुजर गये। इस बीच में मेराबाप पकई दफे घर पर आया और थोड़े-थोड़े दिन रहकर चला गया। घर की बातों में सिर्फ इतना फर्क पड़ा कि मेरा बाप मेरी मां से मुहब्बत ज्यादा करने लगा, मगर मेरी नकली मां तरह-तरह की बेढब फरमाइशों से उसे तंम करने लगी।

एक दिन जब मेरा बाप घर ही में था, आधी रात के समय मेरे बाप और मेरी माँ में कुछ खटपट होने लगी। उस समय मैं जागता था। मेरे जी में आया कि किसी तरह इस झगड़े का सबब मालूम करना चाहिए। आखिर ऐसा ही किया, मैं चुपके से उठा और धीरे-धीरे उस कमरे के पास गया जिसके अन्दर वे दोनों जली-कटी बातें कर रहे थे। उस कमरे में तीन दरवाजे थे, जिनमें से एक खुला हुआ मगर उसके आगे पर्दा गिरा हुआ था और दो दरवाजे बन्द थे। मैं एक बन्द दरवाजे के आगे जाकर (जो