पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१६९

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सकती हो।

कमलिनी––हाँ, मैं यह काम खुद भी कर सकती हूँ मगर ताज्जुब नहीं कि मायारानी के कमरे तक जाते मुझे कोई देख ले और गुल करे तो मुश्किल होगी। यद्यपि मेरा कोई कुछ कर नहीं सकता और मैं इस खंजर की बदौलत सैकड़ों को मार कर निकल जा सकती हूँ, मगर जहाँ तक बिना खून-खराबा किए काम निकल जाय तो उत्तम ही है।

लाड़िली––हाँ ठीक है, तो अब विलम्ब न करना चाहिए।

कमलिनी––तो फिर जा, मैं इसी जगह बैठी तेरी राह देखूँगी!

खंजर के जोड़ की अँगूठी हाथ में पहनने वाद लाड़िली ने तिलिस्मी खंजर ले लिया और बुर्ज का दरवाजा खोल यहाँ से रवाना हुई। कमलिनी को आधे घंटे से ज्यादे राह न देखनी पड़ी, इसके भीतर ही ताली लिए हुए लाड़िली आ पहुँची और अपनी बड़ी बहिन के सामने ताली रख कर बोली, "इस ताली के लेने में कुछ भी कठिनाई न हुई। मुझे किसी ने भी न देखा। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, मायारानी बेखबर सो रही थी, ताली लेते समय वह जाग न उठे इससे यह लिलिस्मी खंजर एक दफे उस के बदन से लगा देना पड़ा, बस तुरत ही उसका बदन काँप उठा मगर वह आँखें न खोल सको, मुझे विश्वास हो गया कि वह बेहोश हो गई। बस मैं ताली लेकर चली आई, मगर अब यहाँ ठहरना उचित नहीं।

कमलिनी––हाँ, अब यहाँ से चलना और उन कैदियों को छुड़ाना चाहिए।

लाडिली––मगर उन कैदियों को छुड़ाने के लिए तुमको इसी बाग की राह से कैदखाने तक जाना होगा!

कमलिनी––नहीं, वहाँ जाने के लिए दूसरी राह भी है जिसे मैं जानती हूँ।

लाडिली––(ताज्जुब से कमलिनी का मुँह देख के) जीजाजी यहाँ के बहत से रास्तों और सुरंगों तथा तहखानों को जानते थे, मालूम होता है तुमने उन्हीं से इसका हाल जाना होगा?

कमलिनी––नहीं, यहाँ की बहुत सी बातें किसी दूसरे ही सबब से मुझे मालम हुई जिसे सुनकर तू बहुत ही खुश होगी, हाँ यदि जीजाजी हम लोगों से जदा न कि जाते तो यहाँ की अजीब बातों के देखने का आनन्द मिलता। मायारानी को भी यहाँ के भेद अच्छी तरह मालूम नहीं हैं

लाड़िली––जीजाजी हम लोगों से जुदा किये गये इसका मतलब मैं नहीं समझी।

कमलिनी––क्या तू समझती है कि गोपालसिंहजी (माया रानी के पति) अपनी मौत से मरे?

लाडिली––(कुछ सोचकर) मुझे तो यही विश्वास है कि उन्हें जहर दिया गया मैंने स्वयं देखा कि मरने पर उनका रंग काला हो गया था और चेहरा ऐसा बिगड़ गया कि मैं पहचान न सकी। हाय, हम दोनों बहिनों पर उनकी बड़ी कृपा रहती थी। थी!

कमलिनी––उनकी कृपा किस पर नहीं रहती थी! (कुछ सोचकर) खैर आज मैं तुझे इस बाग के चौथे दर्जे में ले चल कर एक तमाशा दिखलाऊँगी।