यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
170
लाड़िली––(ताज्जुब से) क्या चौथे दर्जे में तुम जा सकती हो?
कमलिनी––हाँ, मैं यहाँ के बहुत से भेदों को जान गई हूँ और सब जगह घूम फिर सकती हूँ।
लाड़िली––अहा, अब तो मैं जरूर चलूँगी! जीजाजी अक्सर कहा करते थे कि इस बाग के चौथे दर्जे में अगर कोई जाय तो उसे मालूम हो कि दुनिया क्या चीज है और ईश्वर की सृष्टि में कैसी विचित्रता दिखाई दे सकती है।
कमलिनी––अच्छा, अब चलकर पहले कैदियों को छुड़ाना चाहिए।
इतना कह कर कमलिनी उठी और मोमबत्ती हाथ में लिए हुए उस सुरंग के मुहाने पर गई जिसका मुँह चौखूँटे पत्थर के हट जाने से खुल गया था और जिसमें से वह कुछ ही देर पहले निकली थी। नीचे उतरने के लिए सीढ़ियाँ मौजूद थीं, दोनों बहिनें नीचे उतर गईं। आखिरी सीढ़ी पर पहुँचने के साथ ही वह चौखूँटा पत्थर एक हलकी आवाज के साथ अपने ठिकाने पहुँच गया और उस सुरंग का मुँह बन्द हो गया।