गिरफ्तार कर लें, इसके बाद सब काम सहज ही में हो जायगा।
कमलिनी––यह काम सहज नहीं है और इसके सिवाय जहाँ तक मैं समझती हूँ, मायारानी इस समय अपने कमरे में न होगी या यदि होगी भी तो हर तरह से होशियार होगी। केवल इतना ही नहीं वहाँ जाने से और भी कई प्रकार का धोखा है। एक तो उस बाग की चहारदीवारी के बाहर कूदकर या कमन्द लगाकर निकल जाना असंभव है, दूसरे उस बाग की हिफाजत के लिए पाँच सौ सिपाही मुकर्रर हैं जो हमेशा मुस्तैद और सहज ही मायारानी के पास पहुँच जाने के लिए तैयार रहते हैं। मायारानी को गिरफ्तार करके बाग के वाहर ले जाना कठिन है। मेरी समझ में तो आपको एक दफे यहाँ से बाहर निकल जाना चाहिए।
इन्द्रजीतसिंह––मगर मैं कुछ और ही चाहता हूँ।
कमलिनी––वह क्या?
इन्द्रजीतसिंह––यदि तुमसे हो सके तो हमें किसी ऐसी जगह ले चलो, जो इस बाग की सरहद के अन्दर हो और जहाँ दो-तीन रोज तक गुप्त रीति से हम लोग रह भी सकें।
कमलिनी––(कुछ सोचकर) हाँ, यह हो सकता है और इस राय को मैं भी पसंद कहती हूँ।
लाड़िली––(कमलिनी से) तुमने कौन-सी ऐसी जगह सोची है?
कमलिनी––ऐसी जगह बाग के तीसरे दर्जे में है, बल्कि चौथे दर्जे में भी है।
लाड़िली––चौथे दर्जे में जाकर दो-तीन दिन तक रहना उचित नहीं क्योंकि वह बड़ी भयानक जगह है, क्या तुम वहाँ के भेद अच्छी तरह जानती हो?
कमलिनी––हरे कृष्ण गोविन्द! वहाँ का हाल जानना क्या खिलवाड़ है? हाँ, एक मकान के अन्दर जाने का रास्ता जरूर मालूम है, जहाँ कोई दूसरा नहीं पहुँच सकता।
इन्द्रजीतसिंह––तो फिर उसी जगह हम लोगों को क्यों नहीं ले चलती हो?
कमलिनी––(कुछ सोचकर) हाँ, मुझे अब याद आया, इतनी देर से व्यर्थ भटक रही हूँ। अच्छा आप लोग मेरे पीछे-पीछे चले आइये।
सभी को साथ लिए हुए कमलिनी रवाना हुई। थोड़ी दूर जाने के बाद एक बन्द दरवाजा मिला। वह दरवाजा लोहे का था। मगर यह नहीं मालूम होता था कि वह किस तरह खलेगा क्योंकि न तो उसमें कहीं ताली लगाने की जगह थी और न कोई जंजीर या कुंडी ही दिखाई देती थी। दरवाजे की दोनों बगल दीवार में तीन-तीन हाथ ऊँचे दो हाथी बने हुए थे। ये हाथी चाँदी के थे और इनके धड़ का अगला हिस्सा कुछ आगे की तरफ बढ़ा हुआ था। एक हाथी की सूँड में दूसरे हाथी की सूँड गुथी थी। इन दोनों हाथियों के अगले एक-एक पैर आगे बढ़े और कुछ जमीन की तरफ इस प्रकार मुड़े हुए थे, जिसके देखने से मालूम होता था कि दो सफेद हाथी क्रोध में आकर सूँड मिला रहे हैं और लड़ने के लिए तैयार हैं।
कमलिनी––एक ग्रन्थ के पढ़ने से मुझे मालूम हुआ कि यह दरवाजा कमानी के