इत्यादि सब कोई वहाँ से रवाना हुए और उसी किश्ती पर सवार होकर जिसका जिक्र कमलिनी ने किया था, गंगा पार हो गये।
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मायारानी उस बेचारे मुसीबत के मारे कैदी को रंज, डर और तरद्दुद की निगाहों से देख रही थी जब कि यह आवाज उसने सुनी, "बेशक मायारानी की मौत आ गई!" इस आवाज ने मायारानी को हद से ज्यादा बेचैन कर दिया। वह घबरा कर चारों तरफ देखने लगी मगर कुछ मालूम न हुआ कि यह आवाज कहाँ से आई। आखिर लाचार होकर धनपत को साथ लिये हुए वहाँ से लौटी और जिस तरह वहाँ गई थी उसी तरह बाग के तीसरे दर्जे से होती हुई कैदखाने के दरवाजे पर पहुँची जहाँ अपने दोनों ऐयार बिहारीसिंह और हरनामसिंह को छोड़ गई थी। मायारानी को देखते ही बिहारीसिंह बोला––
बिहारीसिंह––आप हम लोगों को यहाँ व्यर्थ ही छोड़ गईं।
मायारानी––हाँ, अब मैं भी यही सोचती हूँ क्योंकि अगर तुम दोनों को अपने साथ ले जाती तो इसी समय टण्टा तै हो जाता। यद्यपि धनपत मेरे साथ थी और तम लोग भी जानते हो कि यह बहुत ताकतवर है तथापि मेरा हौसला न पड़ा कि उसे बाहर निकालती।
बिहारीसिंह––(चौंक कर) तो क्या आप अपने कैदी को देखने के लिए चौथे दर्जे में गई थीं! मगर मैंने जो कुछ कहा वह कुछ दूसरे मतलब से कहा था।
मायारानी––हाँ, मैं उसी दुश्मन के पास गई थी जिसके बारे में चण्डूल ने मुझे होशियार किया था, मगर तुमने यह किस मतलब से कहा कि आप हम लोगों को यहाँ व्यर्थ ही छोड़ गई थी?
बिहारीसिंह––मैंने इस मतलब से कहा कि हम लोग यहाँ बैठे-बैठे जान रहे थे कि इस कैदखाने के अन्दर ऊधम मच रहा है मगर कुछ कर नहीं सकते थे।
मायारानी––ऊधम कैसा?
बिहारीसिंह––इस कैदखाने के अन्दर से दीवार तोड़ने की आवाज आ रही थी, मालूम होता है कि कैदियों की हथकड़ी-बेड़ी किसी ने खोल दीं।
मायारानी––मगर तुम्हारी बातों से यह जाना जाता है कि अभी कैदी लोग इसके अन्दर ही हैं। मैं सोच रहा था कि जब ताली लेकर लाड़िली चली गई तो कहीं कैदियों को भी छुड़ा न ले गई हो।
बिहारीसिंह––नहीं-नहीं, कैदी बेशक इसके अन्दर थे और आपके जाने के बाद कैदियों की बातचीत की कुछ-कुछ आवाज भी आ रही थी, कुछ देर बाद दीवार तोड़ने की आहट मालूम होने लगी, मगर अब मैं नहीं कह सकता कि कैदी इसके अन्दर हैं या