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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१९२

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के डर से वे लोग यह अनर्थ करने के लिए तैयार हो गये। धनपत और दोनों ऐयारों को साथ लिए हुए मायारानी फिर बाग के चौथे दर्जे की ओर रवाना हुई। सूर्य भगवान के दर्शन तो नहीं हुए थे मगर सवेरा हो चुका था और मायारानी के नौकर नींद से उठकर अपने-अपने कामों में लग चुके थे। लेकिन मायारानी का ध्यान उस तरफ कुछ भी न था, उस बेचारे कैदी की जान लेना ही सबसे जरूरी काम समझ रखा था।

थोड़ी ही देर में चारों आदमी बाग के चौथे दर्जे में जा पहुँचे और कुएँ के अन्दर उतर कर उस कैदखाने में गये जिसमें मायारानी का वह अनूठा कैदी बन्द था। मायारानी को उम्मीद थी कि उस कैदी को फिर उसी तरह हाथ में ढाल लिए हुए देखेगी, मगर ऐसा न हुआ। उस जंगले वाली कोठरी का दरवाजा खुला हुआ था और उस कैदी का कहीं पता न था।

वहाँ की ऐसी अवस्था देखकर मायारानी अपने रंज और गम को सम्हाल न सकी और एकदम 'हाय' करके जमीन पर गिर कर बेहोश हो गई। धनपत और दोनों ऐयारों के भी होश जाते रहे, उनके चेहरे पीले पड़ गए और निश्चय हो गया कि अब जान जाने में कोई कसर नहीं है। केवल इतना ही नहीं बल्कि डर के मारे वहाँ ठहरना भी वे लोग उचित न समझते थे मगर बेहोश मायारानी को वहाँ से उठाकर बाग के दूसरे दर्जे में ले जाना भी कठिन काम था। इसलिए लाचार होकर उन लोगों को वहाँ ठहरना पड़ा।

बिहारीसिंह ने अपने बटुए में से लखलखा निकाल कर मायारानी को सुंघाया और कोई अर्क उसके मुँह में टपकाया। थोड़ी देर में मायारानी होश में आई और पड़े-पड़े, नीचे लिखी बातें प्रलाप की तरह बकने लगी––

"हाय, आज मेरी जिन्दगी का दिन पूरा हो गया और मेरी मौत आ पहुँची। हाय, मुझे तो अपनी जान का धोखा उसी दिन हो चुका था, जिस दिन कम्बख्त नानक ने दरबार में मेरे सामने कहा था कि 'उस कोठरी की ताली मेरे पास है जिसमें किसी के खून से लिखी हुई किताब रखी है[]।' इस समय उसी किताब ने धोखा दिया। हाय, उस किताब के लिए नानक को छोड़ देना ही बुरा हुआ। यह काम उसी हरामजादे का है, लाड़िली और धनपत के किए कुछ भी न हुआ। (धनपत की तरफ देख कर) सच तो यह है कि मेरी मौत तेरे ही सबब से हुई। तेरी ही मुहब्बत ने मुझे गारत किया, तेरे ही सबब से मैंने पाप की गठरी सिर पर लादी, तेरे ही सबब से मैंने अपना धर्म खोया, तेरे ही सबब से मैं बूरे कामों पर उतारू हुई, तेरे ही सबब से मैंने अपने पति के साथ बुराई की, तेरे ही सबब से मैंने अपना सर्वस्व बिगाड़ दिया। तेरे ही सबब से मैं वीरेन्द्रसिंह के लड़कों के साथ बुराई करने के लिए तैयार हुई, तेरे ही सबब से कमलिनी मेरा साथ छोड़ कर चली गई, और तेरे ही सबब से आज मैं इस दशा को पहुँची। हाय, इसमें कोई सन्देह नहीं कि बरे कर्मों का बुरा फल अवश्य मिलता है। हाय, मुझ-सी औरत जिसे ईश्वर ने हर प्रकार का सूख दे रखा था आज बुरे कर्मों की बदौलत ही इस अवस्था को पहुँची। आह


  1. देखिए चौथा भाग, सातवां बयान।