पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/१९५

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भूतनाथ––उसका हाल मैं तुझसे नहीं कह सकता।

नागर––खैर, मुझे उसके विषय में कुछ जानने की इच्छा भी नहीं है।

भूतनाथ––हाँ, तो मेरी स्त्री का हाल तुझे मालूम है?

नागर––बेशक मालूम है।

भूतनाथ––क्या अभी तक वह जीती है?

नागर––हाँ, जीती है मगर अब चार-पाँच दिन के बाद जीती न रहेगी।

भूतनाथ––सो क्यों? क्या बीमार है?

नागर––नहीं बीमार नहीं है, जिसके यहाँ वह कैद है उसी ने उसके मारने का विचार किया है।

भूतनाथ––उसे किसने कैद कर रक्खा है?

नागर––यह हाल तुझसे मैं क्यों कहूँ? जब तू मेरा दुश्मन है और मुझे कैदी बनाकर लिए जाता है तो मैं तेरे साथ नेकी क्यों करूँ?

भूतनाथ––इसके बदले में मैं तेरे साथ कुछ नेकी कर दूँगा।

नागर––बेशक इसमें कोई सन्देह नहीं कि तू हर तरह से मेरे साथ नेकी कर सकता है और मैं भी तेरे साथ बहुत-कुछ भलाई कर सकती हूँ, सच तो यह है कि तुझ पर मेरा दावा है।

भूतनाथ––दावा कैसा

नागर––(हँस कर) उस चाँदनी रात में मेरी चुटिया के साथ फूल गूँथने का दावा! उस मसहरी के नीचे रूठ जाने का दावा! नाखून के साथ खून निकालने का दावा! और उस कसम की सचाई का दावा जो रोहतासगढ़ जाती समय नरमी लिए हुए कठोर पिण्डी पर––! क्या और कहूँ?

भूतनाथ––बस बस बस, मैं समझ गया! विशेष कहने की कोई आवश्यकता नहीं है। वह सब कार्रवाई तुम्हीं लोगों की तरफ से हुई थी। जरूर नानक की माँ के गायब होने के बाद तू ही उसकी शक्ल बनाके बहुत दिनों तक मेरे घर रही और तेरे ही साथ बहुत दिनों तक मैंने ऐश किया।

नागर––और अन्त में वह 'रिक्तगन्थ' तुमने मेरे ही हाथ में दिया था।

भूतनाथ––ठीक है ठीक है, तो तेरा दावा मुझ पर अब उतना ही हो सकता है जितना किसी बेईमान और बेमुरौवत रण्डी का अपने यार पर।

नागर––खैर उतना ही सही, मैं रण्डी तो हूँ ही, मुझे चालाक और अपने काम का समझ कर मनोरमा ने अपनी सखी बना लिया और इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि उसकी बदौलत मैंने बहुत कुछ सुख भोगा।

भूतनाथ––खैर तो मालूम हुआ कि यदि तू चाहे तो मेरी स्त्री को मुझसे मिला सकती है?

नागर––बेशक ऐसा ही है मगर इसके बदले में तू मुझे क्या देगा?

भूतनाथ––(खंजर की तरफ इशारा करके) यह तिलिस्मी खंजर छोड़ कर जो माँगे सो तुझे दूँ।