नागर––मैं तेरा खंजर नहीं लेना चाहती, मैं केवल इतना ही चाहती हूँ कि तू वीरेन्द्रसिंह की तरफदारी छोड़ दे और हम लोगों का साथी बन जा। फिर तुझे हर तरह की खुशी मिल सकती है। तू करोड़ों रुपये का धनी हो जायगा और दुनिया में बड़ी खुशी से अपनी जिन्दगी बितावेगा।
भूतनाथ––यह मुश्किल बात है, ऐसा करने से मेरी सख्त बदनामी ही नहीं होगी बल्कि मैं बड़ी दुर्दशा के साथ मारा जाऊँगा।
नागर––तुम्हारा कुछ न बिगड़ेगा, मैं खूब जानती हूँ कि इस समय जिस सूरत में तुम हो वह तुम्हारी असली सूरत नहीं है और कमलिनी से तुम्हारी नई जान-पहचान है, जरूर कमलिनी तुम्हारी असली सूरत से वाकिफ न होगी इसलिए तुम सूरत बदलकर दुनिया में घूम सकते हो और कमलिनी तुम्हारा कुछ भी नहीं कर सकती।
भूतनाथ––(हँस कर) कमलिनी को मेरा सब भेद मालूम है और कमलिनी के साथ दगा करना अपनी जान के साथ दुश्मनी करना है क्योंकि वह साधारण औरत नहीं है। वह जितनी ही खूबसूरत है उतनी ही बड़ी चालाक धूर्त, विद्वान और ऐयार भी है और साथ इसके नेक और दयावान भी। ऐसे के साथ दगा करना बुरा है। ऐसा करने से दूसरों की क्या कहूँ, खास मेरा लड़का नानक ही मुझ से घृणा करेगा।
नागर––नानक जिस समय अपनी माँ का हाल सुनेगा, बहुत ही प्रसन्न होगा बल्कि मेरा अहसान मानेगा, रहा तुम्हारा कमलिनी से डरना तो वह बहुत बड़ी भूल है, महीने दो महीने के अन्दर ही तुम सुन लोगे कि कमलिनी इस दुनिया से उठ गई, और यदि तुम हम लोगों की मदद करोगे तो आठही दस दिन में कमलिनी का नाम-निशान मिट जायगा। फिर तुम्हें किसी तरह का डर नहीं रहेगा और तुम्हारे इस खंजर का मुकाबला करने वाला भी इस दुनिया में कोई न रहेगा। तुम विश्वास करो कि कमलिनी बहुत जल्द मारी जायगी और तब उसका साथ देने से तुम सूखे ही रह जाओगे। मैं तुम्हें फिर समझा कर कहती हूँ कि हम लोगों की मदद करो। तुम्हारी मदद से हम लोग थोड़े ही दिनों में कमलिनी, राजा वीरेन्द्र सिंह और उनके दोनों कुमारों को मौत की चारपाई पर सुला देंगे। तुम्हारी खूरसूरत प्यारी जोरू तुम्हारे बगल में होगी, करोड़ों रुपये की सम्पत्ति के तुम मालिक होगे और मैं भी तुम्हारी रण्डी बनकर तुम्हारी बगल गर्म करूँगी क्योंकि मैं तम्हें दिल से चाहती हूँ, और ताज्जुब नहीं कि तुम्हें विजयगढ़ का राज्य दिला हूँ। मैं समझती हूँ कि तुम्हें मायारानी की ताकत का हाल मालूम होगा।
भूतनाथ––हाँ हाँ मैं मशहूर मायारानी को अच्छी तरह जानता हँ, परन्तु उसके गुप्त भेदों का हाल कुछ-कुछ सिर्फ कमलिनी की जुबावी सुना है अच्छी तरह नहीं मालूम।
नागर––उसका हाल मैं तुमसे कहूँगी, वह लाखों आदमियों को इस तरह मार डालने की कुदरत रखती है कि किसी को कानों-काम मालूम न हो। उसके एक जरा से इशारे पर तम दीन-दुनिया से बेकार कर दिए गए, तुम्हारी जोरू छीन ली गई, और तुम किसी को मुँह दिखाने लायक न रहे। कहो, जो मैं कहती हूँ वह ठीक है या नहीं?
भूतनाथ––हाँ ठीक है मगर इस बात को मैं नहीं मान सकता कि वह गुप्त रीति से लाखों आदमियों को मार डालने की कुदरत रखती है। अगर ऐसा ही होता तो
च॰ स॰-2-12