कि उस जमीन में जिन्नों ने अपना घर बना लिया है और जो कोई उधर से जाता है उसे मार कर अपनी जात में मिला लिया करते हैं, इत्यादि तरह-तरह की बातें लोग करते थे। मगर उन दोनों मुसाफिरों को जो इस समय उसी तरफ कदम बढ़ाये जा रहे हैं, इन बातों की कुछ परवाह न थी।
थोड़ी ही देर में ये दोनों आदमी जिनमें से एक बहुत ही कमजोर और थका हुआ जान पड़ता था, उस हिस्से में जा पहुँचे और खड़े होकर चारों तरफ देखने लगे। पास ही में एक पुराना मकान दिखाई दिया जो तीन हिस्से से ज्यादा टूट चुका था और उसके चारों तरफ जंगली पेड़ों और लताओं ने एक भयानक-सा दृश्य बना रखा था। उसी जगह एक आदमी टहलता हुआ नजर आया, जो इन दोनों को देखते ही पास आया और बोला, "हमारे साथियों ने उस नियत जगह पर ठहरना उचित न जाना और राय पक्की हुई कि एक नाव पर सवार होकर सब लोग काशी की तरफ रवाना हो जायँ और उसी जगह से अपनी कार्रवाई करें। वे लोग नाव पर सवार हो चुके हैं कमलिनीजी यह कह कर मुझे इस जगह छोड़ गई हैं कि तेजसिंह राजा गोपालसिंह को साथ लेकर आवें तो उन्हें लिए हुए बालाघाट की तरफ, जहाँ हम लोगों की नाव खड़ी होगी, बहुत जल्द चले आना।"
पाठक समझ ही गये होंगे कि ये दोनों मुसाफिर तेजसिंह और राजा गोपालसिंह (मायारानी के पुराने कैदी) थे। हाँ उस आदमी का परिचय हम दिये देते हैं, जो उन दोनों को इस भयानक स्थान में मिला था। यह तेजसिंह के प्यारे दोस्त देवीसिंह थे।
देवीसिंह की बात को सुनकर तेजसिंह अपने साथी राजा गोपालसिंह को साथ लिए हए वहाँ से रवाना हुए और थोड़ी देर में गंगा के किनारे पहुँच कर उस नाव पर जा सवार हुए, जिस पर कमलिनी, लाड़िली, इन्द्रजीतसिंह, आनन्दसिंह, तारासिंह, भैरोंसिंह और शेरसिंह सवार थे। वह किश्ती बहुत छोटी तो न थी, मगर हल्की और तेज जाने वाली थी। मालूम होता है कि उसको उन लोगों ने खरीद लिया था, क्योंकि उस पर कोई मल्लाह न था और केवल ऐयार लोग खेकर ले जाने के लिए तैयार थे। तेजसिंह को और राजा गोपालसिंह को देखते ही सब उठ खड़े हुए। कुँअर इन्द्रजीतसिंह ने खातिर के साथ राजा गोपालसिंह को अपने पास बैठा कर किश्ती किनारे से हटाने की आज्ञा दी और बात-की-बात में नाव किनारा छोड़ कर दूर दिखाई देने लगी।
इन्द्रजीतसिंह––(राजा गोपालसिंह से) मैं इस समय आपको अपने पास देख कर बहुत ही प्रसन्न हूँ, ईश्वर ही ने आपकी जान बचाई।
गोपाल––मुझे अपने बचने की कुछ भी आशा न थी, यह तो बस आपके चरणों का प्रताप है कि कमलिनी वहाँ गई और उसे इत्तिफाक से मेरा हाल मालूम हो गया।
कमलिनी––मुझे आशा थी कि आपको साथ लिए तेजसिंह सूर्य निकलने के साथ ही हम लोगों से आ मिलेंगे, मगर दो दिन की देर हो गई और यह दो दिन का समय बड़ी मुश्किल से बीता क्योंकि हम लोगों को बड़ी चिन्ता इस बात की थी कि आपके आने में देर क्यों हुई। अब सबके पहले इस विलम्ब का कारण हम लोग सुना चाहते हैं।
गोपालसिंह––तेजसिंह जिस समय मुझे कैद से छुड़ा कर उस तिलिस्मी बाग के