चले जाना और यदि अपनी इच्छानुसार कोई काम करने के लिए कहे तो उसमें किसी तरह का शक न करना। मैं इससे अपना भेद नहीं छिपाती और इसे अपना विश्वास-पात्र समझती हूँ।" इसके बाद हस्ताक्षर और निशान करके वह चिट्ठी भूतनाथ के हवाले की और कहा कि "बस तुम इसी समय मनोरमा के मकान की तरफ चले जाओ और राजा गोपालसिंह से मिलकर काम करो या जो मुनासिब हो करो मगर देखो, खूब होशियारी से काम करना, मामला बहुत नाजुक है और तुम्हारे ईमान में जरा-सा फर्क पड़ेगा तो मैं बहुत बुरी तरह पेश आऊँगी।"
"आप हर तरह से बेफिक्र रहिए!" कहकर भूतनाथ टीले के नीचे उतर आया और देखते-देखते सामने के जंगल में घुसकर गायब हो गया।
8
अपनी बहिन लाड़िली, ऐयारों और दोनों कुमारों को साथ लेकर कमलिनी राजा गोपालसिंह के कहे अनुसार मायारानी के तिलिस्मी बाग के चौथे दर्जे में जाकर देव-मन्दिर में कुछ दिन रहेगी। वहाँ रहकर ये लोग जो कुछ करेंगे, उसका हाल पीछे लिखेंगे, इस समय तो भूतनाथ का कुछ हाल लिखकर हम अपने पाठकों के दिल में एक प्रकार का खुटका पैदा करते हैं।
भूतनाथ कमलिनी से विदा होकर सीधे काशीजी की तरफ नहीं गया, बल्कि मायारानी से मिलने के लिए उसके खास बाग (तिलिस्मी बाग) की तरफ रवाना हुआ और दो पहर दिन चढ़ने के पहले ही बाग के फाटक पर जा पहुँचा। पहरे वाले सिपाहियों में से एक की तरफ देखकर बोला, "जल्द इत्तिला कराओ कि भूतनाथ आया है।" इसके जवाब में उस सिपाही ने कहा, "आपके लिए रुकावट नहीं है आप चले जाइए, जब दूसरे दर्जे के फाटक पर जाइएगा तो लौंडियों से इत्तिला कराइयेगा।"
भूतनाथ बाग के अन्दर चला गया। जब दूसरे दर्जे के फाटक पर पहुँचा, तो लौंडियों ने उसके आने की इत्तिला की और वह बहुत जल्द मायारानी के सामने हाजिर किया गया।
मायारानी––कहो भूतनाथ, कुशल से तो हो? तुम्हारे चेहरे पर खुशी की निशानी पाई जाती है, इससे मालूम होता है कि कोई खुशखबरी लाये हो और तुम्हारे शीध्र लौट आने का भी यही सबब है। तुम जो चाहो कर सकते हो! हाँ, क्या खबर लाये?
भूतनाथ––अब तो मैं बहुत कुछ इनाम लूँगा, क्योंकि वह काम कर आया हूँ जो सिवा मेरे दूसरा कोई कर ही नहीं सकता था।
मायारानी––वेशक तुम ऐसे ही हो, भला कहो तो सही क्या कर आये?
भूननाथ––वह बात ऐसी नहीं है कि किसी के सामने कही जाये।