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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२१५

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मायारानी––(लौंडियों को चले जाने का इशारा करके) बेशक मुझसे भूल हुई कि इन सभी के सामने तुमसे खुशी का सबब पूछती थी। हाँ, अब तो सन्नाटा हो गया।

भूतनाथ––आपने अपने पति गोपाल सिंह के लिए जो उद्योग किया था, वह तो बिल्कुल ही निष्फल हुआ। मैं अभी कमलिनी के पास से चला आ रहा हूँ। उसे मुझ पर पूरा भरोसा और विश्वास है और वह मुझसे अपना कोई भेद नहीं छिपाती। उसकी जवानी जो कुछ मुझे मालूम हुआ है उससे जाना जाता है कि गोपालसिंह अभी किसी के सामने अपने को जाहिर नहीं करेगा बल्कि गुप्त रहकर ही आपको तरह-तरह की तकलीफें पहुँचावेगा और अपना बदला लेगा।

मायारानी––(काँप कर) बेशक वह मुझे तकलीफ देगा। हाय, मैंने दुनिया का सुख कुछ भी नहीं भोगा। खैर, तुम कौन-सी खुशखबरी सुनाने आये हो सो तो कहो।

भूतनाथ––कह तो रहा हूँ––पर आप स्वयं बीच में टोक देती हैं तो क्या करूँ। हाँ तो इस समय आपको सताने के लिए बड़ी-बड़ी कार्रवाईयाँ हो रही हैं और रोहतासगढ़ से फौज चली आ रही है क्योंकि गोपालसिंह और तेजसिंह ने कुमारों की दिलजमई करा दी है कि राजा वीरेन्द्रसिंह और रानी चन्द्रकान्ता को मायारानी ने कैद नहीं किया वल्कि धोखा देने की नीयत से दो आदमियों को नकली चन्द्रकान्ता और वीरेन्द्रसिंह बना कर कैद किया है। अब कुँअर इन्द्रजीतसिंह के दो ऐयारों को साथ लेकर गोपालसिंह किशोरी और कामिनी को छुड़ाने के लिए मनोरमा के मकान में गये हैं।

मायारानी––ना बोले रहा नहीं जाता! मैं न तो कुँअर इन्द्रजीतसिंह आनन्द या उनके ऐयारों से डरती हूँ और न रोहतासगढ़ की फौज से डरती हूँ, मैं अगर डरती हूँ तो केवल गोपालसिंह से बल्कि उसके नाम से, क्योंकि मैं उसके साथ बुराई कर चुकी हूँ और वह मेरे पंजे से निकल गया है। खैर, यह खबर तो तुमने अच्छी सुनाई कि वह किशोरी और कामिनी को छुड़ाने के लिए मनोरमा के मकान में गया है। मैं आज ही यहाँ से काशीजी की तरफ रवाना हो जाऊँगी और जिस तरह होगा, उसे गिरफ्तार करूँगी!

भूतनाथ––नहीं-नहीं, अब आप उसे कदापि गिरफ्तार नहीं कर सकतीं, आप क्या बल्कि आप-सी अगर दस हजार एक साथ हो जाये तो उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

मायारानी––(चिढ़कर) सो क्यों?

भूतनाथ––कमलिनी ने उसे एक ऐसी अनूठी चीज दी है कि वह जो चाहे कर सकता है और आप उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

मायारानी––बह कौन ऐसी अनमोल चीज है?

इसके जवाब भूतनाथ ने उस तिलिस्मी खंजर का हाल और गुण बयान किया जो कमलिनी के कुँअर इन्द्रजीतसिंह को दिया था और कुँअर साहब ने गोपालसिंह को दे दिया था। अभी तक उस खंजर का पूरा हाल मायारानी को मालूम न था इसलिए उसे बड़ा ही ताज्जुब हुआ और वह कुछ देर तक सोचने के बाद बोली––

मायारानी––अगर ऐसा खंजर उसके हाथ लग गया है तो उसका कोई भी कुछ बिगाड़ नहीं सकता। बस में अपनी जिन्दगी से निराश हो गई। परन्तु मुझे विश्वास नहीं