तरफ खड़ा-खड़ा इस हरामजादे की बातें सुन रहा था!"
'हरामजादे' का शब्द सुनते ही उस नौजवान को क्रोध चढ़ आया और वह हाथ में खंजर लेकर भूतनाथ की तरफ झपटा। भूतनाथ ने चालाकी से उसकी कलाई पकड़ ली और कमरबन्द में हाथ डाल के ऐसी अड़ानी मारी कि वह धम्म जमीन पर गिर पड़ा। नागर दौड़ी हुई बाहर चली गई और एक मजबूत रस्सी ले आई जो उस नौजवान के हाथ-पैर बाँधने के काम में आई। भूतनाथ उस नौजवान को घसीटता हुआ दूसरी कोठरी में ले गया और नागर भी भूतनाथ के पीछे-पीछे चली गई।
आधे घण्टे के बाद नागर और भूतनाथ फिर उसी कमरे में आये और दोनों प्रेमी मसनद पर बैठ कर खुशी-खुशी-हँसी दिल्लगी की बातें करने लगे। अन्दाज से मालूम होता है कि ये दोनों उस नौजवान को कहीं कैद कर आये हैं।
थोड़ी देर तक हँसी-दिल्लगी होती रही, इसके बाद मतलब की बातें होने लगीं। नागर के पूछने पर भूतनाथ ने अपना हाल कहा और सबके पहले वह चिट्ठी नागर को दिखाई जो राजा गोपालसिंह के लिए कमलिनी ने लिख दी थी, इसके बाद मायारानी के पास जाने और बातचीत करने का खुलासा हाल कह के वह दूसरी चिट्ठी भी नागर को दिखाई जो मायारानी ने नागर के नाम की लिख कर भूतनाथ के हवाले की थी। यह सब हाल सुन कर नागर बहुत खुश हुई और बोली, "यह काम सिवाय तुम्हारे और किसी से नहीं हो सकता था और यदि तुम मायारानी की चिट्ठी न भी लाते तो भी तुम्हारी आज्ञानुसार काम करने को मैं तैयार थी।"
भूतनाथ––सो तो ठीक है, मुझे भी यही आशा थी, परन्तु यों ही एक चिट्ठी तुम्हारे नाम की लिखा ली।
नागर––पर ताज्जुब है कि राजा गोपालसिंह और देवीसिंह आज के पहले से इस शहर में आए हुए हैं मगर अभी तक इस मकान के अन्दर उन दोनों के आने की आहट नहीं मिली। न मालूम वे दोनों कहाँ और किस धुन में हैं! खैर जो होगा देखा जायगा, अब यह कहिये कि आप क्या करना चाहते हैं?
भूतनाथ––(कुछ देर तक सोच कर) अगर ऐसा है तो मुझे स्वयं उन दोनों को ढूँढ़ना पड़ेगा। मुलाकात होने पर दोनों को गुप्त रीति से इस मकान के अन्दर ले आऊँगा और किशोरी-कामिनी को छुड़ा कर यहाँ से निकल जाऊँगा, फिर धोखा देकर किशोरी और कामिनी को अपने कब्जे में कर लूँगा, अर्थात् उन्हें कोई दूसरा काम करने के लिए कह कर किशोरी और कामिनी को रोहतासगढ़ पहुँचाने का वादा कर ले जाऊँगा और उस गुप्त खोह में जिसे मैं अपना मकान समझता हूँ और तुम्हें दिखा चुका हूँ अपने आदमियों के सुपुर्द करके गोपालसिंह से आ मिलूँगा और फिर उसे कैद कर के मायारानी के पास पहुँचा दूँगा जिसमें वह अपने हाथ से उसे मार कर निश्चिन्त हो जाय।
नागर––बस-बस, तुम्हारी राय बहुत ठीक है, अगर इतना काम हो जाय तो फिर क्या चाहिए! मायारानी से मुँहमाँगा इनाम मिले क्योंकि इस समय वह राजा गोपालसिंह के सबब से बहुत ही परेशान हो रही है, यहाँ तक कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह वगैरह के हाथ से तिलिस्म को बचाने का ध्यान तक भी उसे बिल्कुल ही जाता रहा।