यदि वह गोपालसिंह को मार के निश्चित हो जाय तो अपने से बढ़कर भाग्यवान दुनिया में किसी को नहीं समझेगी जैसा कि थोड़े दिन पहले समझती थी।
भूतनाथ––जो मैं कह चुका हूँ वही होगा इसमें कोई सन्देह नहीं। अच्छा अब तुम इस मकान का पूरा-पूरा भेद मुझे बता दो जिसमें किसी तहखाने, कोठरी, रास्ते या चोर दरवाजे का हाल मुझसे छिपा न रहे।
नागर––बहुत अच्छा, चलिए उठिए, जहाँ तक हो सके इस काम से भी जल्द ही निपट लेना चाहिए।
नागर ने उस मकान का पूरा-पूरा भेद भूतनाथ को बता दिया, हरएक कोठरी, तहखाना, रास्ता और चोर दरवाजा तथा सुरंग दिखा दिया और उनके खोलने और बन्द करने की विधि भी बता दी। इस काम से छुट्टी पाकर भूतनाथ नागर से बिदा हुआ और राजा गोपालसिंह तथा देवीसिंह की खोज में चारों ओर घूमने लगा।
10
दूसरे दिन आधी रात जाते-जाते भूतनाथ फिर उसी मकान में नागर के पास पहुँचा। इस समय नागर आराम से सोई न थी बल्कि न मालूम किस धुन और फिक्र में मकान की पिछली तरह नजरबाग में टहल रही थी। भूतनाथ को देखते ही वह हँसती हुई पास आई और बोली।
नागर––कहो, कुछ काम हुआ?
भूतनाथ––काम तो बखूबी हो गया, उन दोनों से मुलाकात भी हुई और जो कुछ मैंने कहा दोनों ने मंजूर भी किया। कमलिनी की चिट्ठी जब मैंने गोपालसिंह के हाथ में दी तो वे पढ़ कर बहुत खुश हुए और बोले, "कमलिनी ने जो कुछ लिखा है मैं उसे मंजूर करता हूँ। वह तुम पर विश्वास रखती है तो मैं भी रखूगा और जो तुम कहोगे वही करूँगा।"
मागर––बस सब काम बखूबी बन गया, अच्छा अब क्या करना चाहिए? जाकर किवाड़ बन्द करके सो रही और सिपाहियों को भी हुक्म दे दो कि आज कोई सिपाही पहरा न दे बल्कि सब आराम से सो रहें, यहाँ तक कि अगर किसी को इस बाग में देखें भी तो चुपके हो रहें।
नागर "बहुत अच्छा" कह कर अपने कमरे में चली गई और भूतनाथ के कहे मुताबिक सिपाहियों को हुक्म देकर अपने कमरे का दरवाजा बन्द करके चारपाई पर लेट रही। भूतनाथ उसी बाग में घूमता-फिरता पिछली दीवार के पास जहाँ एक चोर दरवाजा था जा पहुँचा और उसी जगह बैठकर किसी के आने की राह देखने लगा।
आधे घण्टे तक सन्नाटा रहा, इसके बाद किसी ने दरवाजे पर दो दफे हाथ से थपकी लगाई। भूतनाथ ने उठ कर झट दरवाजा खोल दिया और दो आदमी उस राह