जानती थी कि भूतनाथ को देखकर शेरसिंह डर गया था मगर इसका सबब पूछने पर भी उसने कुछ न कहा था। इस समय वह फिर उसी भूतनाथ को यहाँ देख कर डर गई और जी में सोचने लगी कि एक बला में तो फँसी ही थी यह दूसरी बला कहाँ से आ पहुँची, मगर उसी के साथ देवीसिंह को देख उसे कुछ ढाढ़स हुई और किशोरी को तो पूरी उम्मीद हो गई कि ये लोग हमको छुड़ाने ही आये हैं। वह भूतनाथ और राजा गोपालसिंह को पहचानती न थी मगर सोच लिया कि शायद ये दोनों भी राजा वीरेन्द्रसिंह के ऐयार होंगे। किशोरी यद्यपि बहुत ही कमजोर बल्कि अधमरी सी हो रही थी मगर इस समय यह जान कर कि कुँअर इन्द्रजीतसिंह के ऐयार हमें छुड़ाने आ गये हैं और अब शीघ्र ही इन्द्रजीतसिंह से मुलाकात होगी उसकी मुरझाई हुई आशालता हरी हो गई और उसमें जान आ गई। इस समय किशोरी का सिर कुछ खुला हुआ था जिसे उसने अपने हाथ से ढँक लिया और देवीसिंह की तरफ देख कर बोली––
किशोरी––मैं समझती हूँ आज ईश्वर को मुझ पर दया आई है इसी से आप लोग मुझे यहाँ से छुड़ा कर ले जाने के लिए आए हैं।
देवीसिंह––जी हाँ, हम लोग आपको छुड़ाने के लिए ही आये हैं, मगर आपकी दशा देख कर रुलाई आती है। हाय, क्या दुनिया में भलों और नेकों को यही इनाम मिला करता है!
किशोरी––मैंने सुना था कि राजा साहब के दोनों लड़कों और ऐयारों को मायारानी ने कैद कर लिया है?
देवीसिंह––जी हाँ, उन कैदी ऐयारों में मैं भी था परन्तु ईश्वर की कृपा से सब कोई छूट गए और अब हम लोग आपको और (कामिनी की तरफ इशारा करके) इनको छुड़ाने आये हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि आप बहुत कुछ मुझसे पूछना चाहती हैं और मेरे पेट में भी बहुत सी बातें कहने योग्य भरी हैं परन्तु यह अमूल्य समय बातों में नष्ट करने योग्य नहीं है इसलिए जो कुछ कहने-सुनने की बातें हैं फिर होती रहेंगी, इस समय जहाँ तक जल्द हो सके यहाँ से निकल चलना ही उत्तम है।
"हाँ ठीक है" कह कर किशोरी उठ बैठी। उसमें चलने-फिरने की ताकत न थी परन्तु इस समय की खुशी ने उसके खून में कुछ जोश पैदा कर दिया और वह इस लायक हो गई कि कामिनी के मोढ़े पर हाथ रख के तहखाने से ऊपर आ सके और वहाँ से बाग की चहारदीवारी के बाहर जा सके। कामिनी यद्यपि भूतनाथ को देखकर सहम गई थी मगर देवीसिंह के भरोसे से उसने इस विषय में कुछ कहना उचित न जाना, दूसरे उसने यह सोच लिया कि इस कैदखाने से बढ़ कर और कोई दुःख की जगह न होगी, अतएव यहाँ से तो निकल चलना ही उत्तम है!
किशोरी और कामिनी को लिये हुए तीनों आदमी तहखाने से बाहर निकले। इस समय भी उस मकान के चारों तरफ तथा नजरबाग में सन्नाटा ही था, इसलिए ये लोग बिना किसी रोकटोक उसी दरवाजे की राह यहाँ से बाहर निकल गये जिससे राजा गोपालसिंह बाग के अन्दर आये थे। थोड़ी दूर पर तीन घोड़े और एक रथ जिसके आगे दो घोड़े जुते हुए थे मौजूद था। रथ पर किशोरी और कामिनी को सवार कराया गया