पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२३

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सरला––मुझे जब तक निश्चय न हो कि तुम शेरसिंह ही हो, मैं अपना भेद कैसे कहूँ?

मैं––क्या तू मुझे नहीं पहचानती?

सरला––क्या जाने, कोई ऐयार सूरत बदल के आया हो। अगर तुम पहचान गए कि मैं सरला हूँ तो कोई ऐसी छिपी हुई बात कहो जो मैंने तुमसे कही हो।

इसके जवाब में मैं वही खोह वाला अर्थात् लाश काटने वाला किस्सा कह गया और अन्त में मैं बोला कि यह हाल स्वयं तूने मुझसे बयान किया था।

उस किस्से को सुनकर कुन्दन हँसी और बोली, "हाँ, अब मैं समझ गयी। मैं चम्पा के हुक्म से यहाँ का हाल-चाल लेने आयी थी और अब किशोरी को छुड़ाने की फिक्र में हूँ। मगर लाली मेरे काम में बाधा डालती है। कोई ऐसी तरकीब बताइये जिसमें लाली मुझसे दबे और डरे।"

मैं उस समय यह कहकर वहाँ से चला आया कि अच्छा, मैं सोच कर इसका जवाब दूँगा।

देवीसिंह––तब क्या हुआ?

शेरसिंह––मैं वहाँ से रवाना हुआ और पहाड़ी के नीचे उतरते समय एक विचित्र बात मेरे देखने और सुनने में आई।

देवीसिंह––वह क्या?

शेरसिंह––जब मैं अँधेरी रात में पहाड़ी के नीचे उतर रहा था तो जंगल में मालूम हुआ कि दो-तीन आदमी जो पगडण्डी के पास ही थे, आपस बातें कर रहे हैं। मैं पैर दवाता हुआ उनके पास गया और छिपकर बातें सुनने लगा, मगर उस समय उनकी बातें समाप्त हो चुकी थीं, केवल एक आखिरी बात सुनने में आई।

देवीसिंह––वह क्या थी?

शेरसिंह––एक ने कहा––'भरसक तो लाली और कुन्दन दोनों उन्हीं में से हैं, नहीं तो लाली तो जरूर इन्द्रजीतसिंह की दुश्मन है! मगर इसकी पहचान तो सहज ही में हो सकती है। केवल 'किसी के खून से लिखी हुई किताब' और 'आँचल पर गुलामी की दस्तावेज' इन दोनों जुमलों से अगर वह डर जाय, तो हम समझ जायँगे कि वीरेन्द्रसिंह की दुश्मन है। खैर, बूझा जायगा, पहले महल में जाने का मौका भी तो मिले। इसके बाद और कुछ सुनने में न आया और वे लोग वहाँ से न मालूम कहाँ चले गए। दूसरे दिन मैं फिर कुन्दन के पास गया और उससे बोला कि "तू लाली के सामने 'किसी के खून से लिखी हुई किताब' और 'आँचल पर गुलामी की दस्तावेज' का जिक्र करके देख, क्या होता है!"

देवीसिंह––फिर क्या हुआ?

शेरसिंह––तीन-चार दिन बाद मैं कुन्दन के पास गया तो उसकी जुबानी मालूम हुआ कि कुन्दन के मुँह से वे बातें सुनकर लाली बहुत डरी और उसने कुन्दन का मुकाबला करना छोड़ दिया। मगर मुझे थोड़े ही दिनों में मालूम हो गया कि कुन्दन सरला न थी, उसने मुझे धोखा दिया और चालाकी से मेरी जुबानी भेद मालूम करके अपना